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इस प्रकार उसके अच्छे वचनों को मानने वाले उसके पिता के द्वारा बिषवृक्ष की तरह एक ब्राह्मणी ब्याह ली गयी । स्वादशीला, आलसी, दुष्ट वह ब्राह्मणी घर के कार्यों को पहले की तरह विद्य प्रभा को सौंपकर स्वयं स्नान, विलेपन, अभूपण, भोजन आदि भोगो में व्याप्त रहती हई ग्रास को तोड़कर भी दो नहीं करती थी। तब बिजली की तरह जलती हुई वह विद्य त्प्रभा सोचती है-'अहो ! मेरे द्वारा पिता से जो सुख के लिए कराया गया वह नरक की तरह दुख का कारण बन गया । अतः बिना भोगे हुए दुष्कर्मों से नहीं छूटा जा सकता है, दूसरा व्यक्ति निमित्तमात्र ही होता है। क्योंकि
गाथा-3. 'सभी व्यक्ति पहले किये गये कार्यों के फलों के परिणाम को ही पाते हैं । अपराधों (दुखों) और गुणों (सुखों) में तो दूसरा व्यक्ति निमित्त मात्र ही होता है।
इस प्रकार उदास, दुखी वह विद्य प्रभा प्रातःकाल में गायों को चराकर. दोपहर में रसरहित, स्वादहीन, ठंडा, रूखा सैकड़ों मक्खिों से युक जूठा भोजन करती थी। इस प्रकार दुःखों को भोगती हुई उसके बारह वर्ष व्यतीत हो गये।
किसी एक दिन दोपहर में गायों को चराती हुई गरमी में गरम किरणों से तपी हुई, वृक्षों के अभाव से वृक्ष की छाया से रहित घास युक्त जमीन पर सोयी हुई उस विद्य त्प्रभा के पास एक सांप आया--
गाथा-4. जो अत्यन्त लाल दोनों जीभों को चलाने वाला, काला और समस्त
प्राणियों के लिए विकट फुकार की आवाज से भय उत्पन्न करने वाला था ।
नागकुमार के शरीर को छिपाये हुए वह सांप मनुष्य की भाषा में सुन्दर वचनों से उस कन्या को जगाता है और उसके सामने इस प्रकार कहता है
गाथा-5. 'हे पुत्री ! भय से डरा मैं तुम्हारे पास आया हूँ । मेरे पीछे लगे हुए जो ये
सपेरे हैं, वे मुझे बांधकर पकड़ लेंगे।
6. इसलिए तुम अपनी गोद में श्रेष्ठ वस्त्र से अच्छी तरह ढककर इसी समय
मेरी रक्षा करो। उसमें क्षण भर भी देर मत करो।
प्राकृत गद्य-सोपान
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