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________________ 9. दिरणचरिया [तृतीया विभक्ति] सुज्जस्स किरणेण सह जरणा जग्गन्ति । बाला जगएण सह उदृन्ति, जलेण मुहं पक्खालन्ति । जणा मन्दिरं गच्छन्ति । तत्थ ते देवं गयणेहिं पासन्ति । ते सिरेण हत्थेहि देवं नमन्ति । मुहेण देवस्स थुइं पढन्ति। ते पुफ्फेहि फलेहि य देवं अच्चन्ति । जणा पायरियेण सत्थं सुणन्ति । सत्थेण बिणा मन्दिरस्स सोहा पत्थि । जहा धणेण अहवा गुरणेण बिरणा नरस्स सोहा रणत्थि । देवं अच्चिऊरण जरणा भुजन्ति । ते भिच्चेण सह प्रावणं गच्छन्ति । बालो मित्तेण सह विज्जालयं गच्छइ । जुबई हत्थेहि वत्थं धोवइ । सा साडीए सोहइ। माया सिसुणो सह खेलइ । सिसू तत्थ पएण चलइ। सो मित्तेण सह खेलइ, कंदुएण रमइ । तेण तं सुक्खं होइ। सो माअाए बिणा ण भुजइ। माया जरेण पीडइ । ताए गिहस्स कज्ज ण होइ। तुमए ताप सेवा होइ । सा दहिणा सह पथ्थं गेण्हइ । घरेण बिरणा सुहं पत्थि । जणा गेहे वसन्ति । ताण हेण गिहस्स सोहा होइ । अभ्यास विभक्ति के शब्दरूप छांटकर उनके अर्थ लिखो। (ख) प्राकृत में अनुवाद करो : यह कार्य मेरे द्वारा होता है। वह कार्य उसके द्वारा होता है । वह बालक के साथ जायेगा। हम शिष्य के साथ भोजन करते हैं। गुरु छात्रों के साथ रहता है। कवि के द्वारा कार्य होता है। वह साधु के साथ पढ़ता है। माता बच्चों के साथ रहती है। बालिका के साथ उसका भाई जाता है। बच्चे मालाओं से खेलते हैं। फलों के बिना वह भोजन नहीं करता है। मैं दही के साथ भोजन करता हूँ। वस्तुओं के साथ क्या है ? 10 प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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