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आज अकार में बारह वर्ष का दुर्भिक्ष पड़ा। उसमें कोए झुण्ड बनाकर आपस में बात करते हैं - 'हम लोगों के द्वारा अब क्या किया जाना चाहिये ? बड़ी भुखमरी उपस्थित हुई है। जनपदों में कौओं के लिये कोई भोजन नहीं है । दूसरे, उस तरह का कुछ अन्य छोड़ा हुआ खाद्य पदार्थ भी प्राप्त नहीं होता है । तो कहाँ चलें ? '
पाठ १३ : कृतघ्न कौए
तब बूढ़े कौओं के द्वारा कहा गया कि - 'हम लोग समुद्रतट पर चलें । वहाँ कापिंजल हमारे भनेज होते हैं । वे हमें समुद्र से भोजन लाकर देंगे । इस के अतिरिक्त जीवन का उपाय नहीं है ।' ऐसा विचारकर वे सब समुद्रतट पर गये । वहाँ कापंजल प्रसन्न हुए । स्वागत, अतिथ सत्कार द्वारा कौओं का सम्मान किया गया । उनकी पाहुनी भी की गयी। इस प्रकार से वहाँ कापंजल उनको भोजन देने लगे । कौए वहाँ पर सुखपूर्वक अपना समय व्यतीत करते हैं ।
उसके बाद बारह वर्ष का दुर्भिक्ष समाप्त हो गया । जनपदों में सुभिक्ष हो गया । तब उन कौओं ने कौओं के मुखिया को 'जनपद को देखकर आओ' ऐसा कहकर वहाँ भेजा । 'यदि सुकाल होगा तो हम लोग जायेंगे ।'
तब वह मुखिया शीघ्र ही पता करके आ गया और कौओं को कहता है दिये हुए पड़े हैं। उठो, चलते हैं ।' तब कहा गया है तत्र क्यों जोना चाहिए ?' कहते हैं- 'भनेज ! हम जाते हैं ।'
कि- 'जनपदों में कौओं के भोजन-पिण्ड दान वे कहते हैं - 'जब हमसे अभी जाने को नहीं यह जानकर कापंजल को बुलाकर इस प्रकार
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तब उन्होंने कहा -- 'क्यों जा रहे हैं ।' तब वे कहते हैं - 'सूर्य के निकलने के पहले ही प्रतिदिन तुम्हारे अहोभाग्य को देखना सम्भव नहीं है ।' ऐसा कहकर वे चले गये ।
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प्राकृत गद्य-सोपान
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