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पाठ १२ : धूर्त और गाड़ीवान
एक मनुष्य ककड़ियों से भरी हुई अपनी गाड़ी के द्वारा नगर में प्रवेश करता है । प्रवेश करते हुए उसे एक धूर्त कहता है- 'जो व्यक्ति तुम्हारी पकड़ियों की गाड़ी को खा ले तो तुम उसे क्या दोगे ?' तब उस गाड़ीवान ने उस धूर्त को कहा'उस व्यक्ति को मैं वह लड्डू दूंगा, जो नगर के दरवाजे से भी न निकले।'
धूर्त ने कहा-'तब इस ककड़ी की गाड़ी को मैं खा लेता हूँ। सुम फिर वह लड्डू दोगे जो नगर के दरवाजे से न निकले।' गाड़ीवान के यह स्वीकार लेने पर बाद में धूर्त ने गवाह भी कर लिये । फिर गाड़ी पर बैठकर वह उन ककड़ियों के एक एक टुकड़े को तोड़कर फेंक देता है। बाद में उस गाड़ीवान से लड्डू मांगने लगता है।
तब गाड़ीवान ने कहा-'तुमने इन ककड़ियों को नहीं खाया है।' धूर्त कहता है-'यदि नहीं खाया है तो तुम इन ककड़ियों को बेच लो ।' बेचने पर कुछ लोग वहां आ गये । वे टूटी हुई ककड़ियों को देखते हैं । तब कुछ लोग कहते हैं --'इन खायी हुई ककड़ियों को कौन खरीदेगा ?'
उस कारण से तब फैसला किया गया-'ककड़ियां खायी गयी हैं' ऐसा मानकर गाड़ीवान शर्त हार गया। तब धूर्त के द्वारा फिर लड्डू मांगा गया । गाड़ोवान को नहीं छोड़ा गया । तब गाड़ीवान ने बुद्धिमानों की सेवा की । उन्होंने संतुष्ट होकर सब पूछा। गाड़ीवान ने उनसे सब कुछ यथावत् कह दिया । ऐसा कहने पर उन्होंने उसे एक उपाय सिखा दिया कि ---- 'तुम एक छोटे लड्डू को नगर के दरबाजे पर रखकर कहो-'देखो यह लड्डू नगर के दरवाजे से स्वयं नहीं निकलता है। अतः इसे ले लो।' ऐसा करने पर तब वह धूर्त हार गया ।
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प्राकृत गद्य-सोपान
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