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पाठ ११ : कलह विनाश का कारण
(किसी एक) जंगल के बीच में मेघ के समान सुशोभित, वनखंड से मंडित अथाह जल से भरा हुआ एक तालाब था । वहाँ बहुत से जलचर (जल के प्रारणी), नभचर (आकाश में उड़ने वाले) और थलचर (पशु, जानवर आदि) प्राणी रहते थे। वहाँ पर हाथियों का एक बड़ा झुण्ड भी रहता था। एक बार ग्रीष्मकाल में वह हाथियों का झुड पानी पीकर और स्नान करके दोपहर के समय में वृक्ष की शीतल छाया में सुखपूर्वक सो रहा था ।
और वहाँ समीप में ही दो गिरगिट लड़ने लग गये । उनको देखकर वनदेवता ने सबकी सभा में यह घोषणा की
गाथा 1.- 'हे हाथियो, जल में रहने वाले प्राणी, त्रस और स्थावर जीवो, सुनो-जहाँ गिरगिट लड़ते हैं, वहाँ नाश हो जाता है ।'
देवता ने कहा-'इन लड़ते हुए गिरगिटों की उपेक्षा मत करो। इनको रोको।' (यह सुनकर) उन जलचर, थलचर आदि प्राणियों ने सोचा-'ये लड़ते हुए गिरगिट हमारा क्या बिगाड़ेगे ?'
तभी वहाँ लड़ता हुआ एक गिरगिट पीड़ित होकर भागा और पीछा किया जाता हुआ वह सुखपूर्वक सोये हुए हाथी के नधुने में 'यह बिल है' ऐसा समझकर घुस गया। दूसरा गिरगिट भी वहीं घुस गया । वे वहीं हाथी के सिर कपाल में लड़ने लगे।
इससे व्याकुल हुए और न सहन करने योग्य अधिक पीड़ा से युक्त उस हाथी ने उस वनखंड को ही नष्ट कर दिया। इससे वहाँ पर रहने वाले बहुत से प्राणी मारे गये । और जल का आलोडन करने से जलचर पीड़ित हुए । तालाब की पाल तोड़ दी गयी । तालाब नष्ट हो गया। इससे सभी जलचर मर गये ।
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प्राकृत गद्य-सोपान
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