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________________ तब वह नन्दा पुष्करिणी क्रम से खुदती-खुदती चार कौनों वाली एवं समान किनारों वाली हो गयी । अनुक्रम से वह वापी शीतल जल वाली हुई । वह पत्तों, बिषतंतुओं और मृणालों से आच्छादित हुई । वह अनेक उत्पल (कमल) पद्म, कुमुद, नलिनी सुन्दर, सुगंधित पु डरीक, महापुडरोक, शतपत्त एवं सहस्रपत्र वाले फूलों, कमलों की केशर से युक्त हुई । वह परिहत्थ, जलजन्तु, भ्रमणशील और मदोन्मत्त भ्रमरों और अनेक पक्षियों के जोड़ों द्वारा किये गये शब्दों से उत्पन्न मधुर स्वरवाली जानी जाने लगी । वह वापी सबको प्रसन्न करने वाली, दर्शनीय, सुन्दर रूपवाली और अनुपम रूपवाली थी। वनखंड उसके बाद उस नंद मरिणकार सेठ ने नन्दा पुष्करिणी की चारों दिशाओं में चार वनखण्ड (बगीचे) बनवाये (लगवाये), उन वनखण्डों की क्रमशः अच्छी रखवाली की गयी, सार-संभाल की गयो, अच्छी तरह उन्हें बढ़ाया गया । तब वे वनखण्ड हरे तथा सघन हो गये । वे पत्तों, पुष्पों, फलों से युक्त होकर हरे-भरे होते हुए अपनी शोभा से अत्यन्त शोभनीय रूप में स्थित हो गये । चित्र-सभा तब नंद मणिकार सेठ ने पूर्व दिशा के बगीचे में एक विशाल चित्रसभा बनवायी । वह कई सौ खंभों पर स्थित, प्रसन्नताजनक, दर्शनीय, सुन्दर एवं अनुपम थी। उस चित्रसभा में बहुत से काले, नीले, लाल,पीले और सफेद रंग वाले काष्ठकर्म (लकड़ी की कला), वस्त्रकर्म (कपड़े पर चित्रकारी), चित्रकर्म तथा लेप्यकर्म (मिट्टी की कलाकृतियां) किये गये थे। धागे से गूथो हुई, फूलों से लपेटी हुई, भरकर बनायी हुई. तथा जोड़-जोड़ कर बनाई हुई कई कलाकृतियों से दर्शनीय वह चित्रसभा दर्शकों को दिखाने लिए स्थित थी। ___ उस चित्रसभा में बहुत से आसन और शयन हमेशा सत्कार के लिए बिछे रहते थे। वहाँ पर बहुत से नाटक करने वाले, नर्तक, स्तुतिगायक, मल्ल, मुष्टि लड़ाने वाले, विदूषक, कथावाचक, तैराक, रास रचने वाले, ज्योतिषी, नट, चित्रपट दिखाने बाले, संगीतज्ञ, तूबा और बीणा बजाने वाले लोग जीविका, भोजन, वेतन आदि 143 प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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