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1. चउप्पनमहापुरिसवरियं, 2. जंबुचरियं 3. रयणचूडरायचरियं, 4. सिरिपासनाहचरियं एवं 5. महावीरचरियं प्रादि ।
चरित साहित्य के ये ग्रन्थ प्रायः पौराणिक कथानकों पर प्राधारित हैं। उन्हीं में से ग्रन्थों के नायकों का चयन कर उनके चरितों को विकसित किया गया है। मूल चरितनायक के जीवन को उद्घाटित करने के लिए इन ग्रन्थों में जो अन्य कथाए एवं दृष्टान्त दिये गये हैं उनसे इन ग्रन्थों का कथात्मक महत्त्व बढ़ गया है। इन ग्रन्थों का गद्य भाग प्राय: सरल.. है। पद्य भाग में काव्यात्मक शैलो अपनायी गयी है।
चउप्पन-महापुरिसचरियं : इस ग्रन्थ की रचना लगभग 9वीं शताब्दी (ई.868) में की गयी थी। शीलंकाचार्य ने इस ग्रन्थ में 24 तीर्थंकरों, 12 चक्रवतियों, 9 वासुदेवों एवं 9 बलदेवों इन कुल 54 महापुरुषों के जीवन-चरितों को प्रस्तुत किया है। अतः यह ग्रन्थ विशालकाय है। ऋषभदेव, पार्श्वनाथ, महावीर, राम, कृष्ण, भरत सभी प्रमुख व्यक्तियों का जीवन इसमें आ गया है । अत: कुछ वर्णन तो केवल परम्परा का निर्वाह करते हैं। किन्तु कुछ चरितों का विश्लेषण सूक्ष्मता से हुआ है । प्रासंगिक कथाएं इस ग्रन्थ को मनोरंजक बनाती हैं।
जबुचरियं : गुणपाल मुनि ने लगभग 9वीं शताब्दी में इस ग्रन्थ की रचर्म की है। जम्बुस्वामी के वर्तमान जन्म की कथा जितनी मनोरंजक है. उतनी ही उनके पूर्वजन्मों की कथाए हैं। इस कारण यह ग्रन्थ पर्याप्त सरस है। धार्मिक वातावरण व्याप्त होने पर भी प्राकृतिक वर्णनों से ग्रन्थकार का कवित्व प्रकट होता है। इस ग्रन्थ का प्राकृत गद्य समासयुक्त और प्रौढ़ है। वासगृह का वर्णन करते हुए कवि कहता है
तत्व वि सुरहिपइन्नकुसुमदॉमविलंबियपवराहिराम, क-पूररेणुकुकुमके सरलवं. गकत्थरियसुरहिगंधपूरपुरिय ....."पविट्ठो कुमारो बासहरं ति ।
प्राकृत गरा-सोपान
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