________________
एवं परिग्रह के परिणामों को प्रकट करने वाली कथाएं नहीं हैं । सम्भवतः इस ग्रन्थ की कुछ कथाए लुप्त भी हुई हों। क्योंकि नन्दी और समवायांगसूत्र में विपाकसूत्र की जो कथावस्तु वरिणत है, उसमें असत्य एवं परिग्रह के दुष्परिणामों की कथाएं होने के उल्लेख हैं।
प्रोपपातिक एवं रायपसेरिणय : प्रौपपातिकसूत्र में भगवान् महावीर की विशेष उपदेश-विधि का निरूपण है। गौतम इन्द्रभूति के प्रश्नों और महावीर के उत्तरों में जो संवादतत्व विकसित हुना है, वह कई कथाओं के लिए आधार प्रदान करता है । नगर-वर्णन, शरीर-वर्णन आदि में अलंकारिक भाषा व शैली का प्रयोग इस ग्रन्थ में है। राजप्रश्नीयसूत्र में राजा प्रदेशी और केशो श्रमण के बीच हुमा संवाद विशेष महत्त्व का है। इसमें कई कथासूत्र विद्यमान हैं। इस प्रसंग में धातु के व्यापारियों की कथा मनोरंजक है । उसे लोक से उठाकर प्रस्तुत किया गया है।
(ख) आर्गामक व्याख्या साहित्य :
प्राकृत आगमों पर जो व्याख्या साहित्य लिखा गया है. उसमें कई छोटी-छोटी कथाए आयी हैं । अतः प्राकृत कथा साहित्य के अध्ययन की दृष्टि से इस व्याख्या साहित्य का भी विशेष महत्त्व है। प्राचारांगचरिण, सूत्रकृतांगरण और निशीथरिण में प्राकृत गद्य में लौकिक कथाए' प्राप्त होती हैं । उत्तराध्ययनरिण में बुद्धि-चमत्कार की भी कथाए हैं। प्रावश्यक चरिण कथानों का भण्डार है। इसमें लौकिक एवं उपदेशात्मक दोनों प्रकार की कथाएं मिलती हैं। इन चूणियों के लेखक जिनदासगरिण महत्तर बहुत बडे दार्शनिक एवं कुशल कथाकार थे । लोक-जीवन को उन्होंने इन कथाओं के द्वारा व्यक्त किया है ।
.. अ.चार्य हरिभद्र ने दशवैकालिकवृति और उपदेशपद में कई प्रकार की.कथाएं प्रस्तुत की हैं। अतः ये दोनों ग्रन्थ भी प्राकृत कथा के आधार
2132
प्राकृत गध-सोपान
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org