________________
शांग कहा गया है । इस ग्रन्थ में वणित कुछ कथाओं का सम्बन्ध अस्टिनेमि और कृष्ण-वासुदेव के युग से है। गजसुकुमाल की कथा लौकिक कथा के अनुरूप विकसित हुई है। द्वारिका नगरी के विनाश का वणन कथा-यात्रा में कौतुहल तत्व का प्रेरक है। ग्रन्थ के अंतिम तीन वर्गों की कथानों का सम्बन्ध महावीर तथा राजा श्रेणिक के साथ है। इनमें अर्जुन मालाकार की कथा तथा सुदर्शन सेठ की अवान्तर-कथा ने पाठक का ध्यान अधिक आकर्षित किया है । अतिमुक्त कुमार की कथा बालकथा की उत्सुकुता को लिए हुए है । इन कथाओं के साथ राजकीय परिवारों के व्यक्तियों का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है । साधना के अनुभवों का साधारणीकरण करने में ये कथाएं कुछ सफल हुई हैं।
अनुतरोपपातिकदशा : इस ग्रन्थ में उन लोगों की कथाए हैं, जिन्होंने तप-साधना के द्वारा अनुत्तर विमानों (देवलोकों) की प्राप्ति की है। कुल 33 कथाएं हैं, जिनमें से 23 कथाएं राजकुमारों की हैं, 10 कथाए इसमें सामान्य पात्रों की। इनमें धन्यकुमार सार्थवाह-पुत्र की कथा अधिक हृदयग्राही है।
विपाकसूत्र : विपाकसूत्र में कर्म-परिणामों की कथाए हैं। पहले स्कन्ध में बुरे कर्मों के दुखदायी परिणामों को प्रकट करने वाली दश कथाएं हैं। मृगापुत्र की कथा में कई अवान्तर कथाए गुपित हैं । उद्देश्य की प्रधानता होने से कथातत्व अधिक विकसित नहीं है। किन्तु वर्णनों का प्राकर्षण बना हुअा है। अति-प्राकृत तत्वों का समावेश इन कथाओं को लोक से जोड़ता है । व्यापारी, कसाई, पुरोहित, कोतवाल, वैद्य, धीवर, रसोईया, वेश्या आदि से सम्बन्ध होने से इन प्राकृत कथाओं में लोकतत्वों का समावेश अधिक हुआ है । दूसरे स्कन्ध की कथाएं अच्छे कर्मों के परिणामों को बताने वाली हैं। सुबाहु की कथा विस्तृत है। अन्य कथाओं में प्रायः वर्णक हैं। इस ग्रन्थ की कथाएकथोपकथन की दृष्टि से अधिक समृद्ध हैं । उनको इस शैली ने परिवर्ती कथा साहित्य को भी प्रभावित किया है । हिंसा, चोरी, मैथुन के दुष्परिणामों को तो ये कथाएं व्यक्त करती हैं। किन्तु इनमें असत्य
प्राकृत गद्य-सोपान
131
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org