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श्राचारांगसूत्र की सूक्तियां प्राकृत गद्य की आधारशिला कही जा सकती हैं। हिंसा की सूक्ष्म व्याख्या करते हुए इसमें कहा गया है:
अरिहता एवं परूवेंति - सव्वे पारणा सर्वे भूता सव्वे जीवा सच्चे सत्ता प हंतव्वा ण अज्जावेयव्वा, रण परिघेतव्वा ण परितावेयव्वा, एग उद्दवेयव्वा । एस धम्मे सुद्ध रिगए सासए समिच्च लोयं खेयण्णेहि पवेइए ।
भगवतीसूत्र, ज्ञाताधर्मकथा, उपासगदशांग, विपाकसूत्र रायपसेणिय, निरयावली आदि आगम ग्रन्थों में प्राकृत गद्य की प्रौढ़ शैली देखने को मिलती हैं । इनमें समासपद एवं काव्यात्मक भाषा का प्रयोग हुआ है । राजा प्रसेन जित् अपनी सम्पत्ति के चार भाग करते हुए कहता है-
अहं गं सेवियानयरी पमोक्खाइ सत्त गामसहम्साइ चत्तारि भागे करिसामि । एगं भागं बलवाहरणस्स दलइस्सामि, एगं भागं कोट्टागारे छुभिस्सामि एवं भागं अतेउरस्स दलइस्सामि, एगेणं भागेणं महइ महालयं कूडागारसालं करिस्सामि ।
आगम के इन ग्रन्थों में प्राकृत गद्य में छोटे-छोटे वाक्यों का भी प्रयोग हुआ है । उनके साथ उपमाए भी जुड़ी हुई हैं। जम्बुद्दीवपत्ति में ऋषभ के मुनि-जीवन का वर्णन कई उपमात्रां के साथ किया गया है । यथा
कुम्मो इ इ दिए गुत्ते, जच्चकंचरणगं व जायरूवे, पोक्खरपत्तं व निरुवलेवे, दो इव सोमभावयाए, सूरो व दित्ततेए, अचले जह मंदरे गिरिवरे' ।
आगम के व्याख्या सहित्य में भी प्राकृत गद्य का प्रयोग हुआ है । चूरिंग एवं भाष्य साहित्य में प्राकृत गद्य के कई सुन्दर नमूने हैं । उत्तराध्ययनचूरिंग दशवैकालिकचूरिंग एवं आवश्यकचूरिंग में कई प्राकृत कथाए आयी हैं, जो गद्य में हैं । इनमें कथोपकथन शैली का भी प्रयोग हुआ है । निशीथचूरिंग का एक संवाद दर्शनीय है
तेरण पुच्छित्ता सा भगति
प्राकृत गद्य-सोपान
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किं ण गतासि भिक्खाए ?
अज्ज ! खमरणं मे ।
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