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सो भगति सा भरगति
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अर्धमागधी आगमों के अतिरिक्त शौरसेनी आगम ग्रन्थों में भी कहींकहीं गद्य का प्रयोग मिलता है । किन्तु अधिकांश ग्रन्थ पद्य में लिखे गये हैं । 'षट्खंडागम' की टीका 'धवला' में ग्रन्थकार के परिचय के सम्बन्ध में कहा गया है
कि निमित्तं ?
मोहति गच्छं करेमि ।
तेल वि तोरट्ठ- विसय- गिरि-यर-पट्टण चंदगुहा ठिएण अट्ठग - महारिणमितपारएण गंथवोच्छेदो होहदित्ति जाइभएस पवयण - वच्छलेग दक्खिणावहाइरिय महिमाए मिलियारणं लेहो पेसिदो ।
इस तरह प्राकृत के काव्यग्रन्थों के गद्य की शैली को समझने के लिए प्राकृत आगम ग्रन्थों के गद्य का अध्ययन किया जाना आवश्यक है । इसमें भारतीय प्राचीन गद्य शैली के विकास के कई बीज सुरक्षित हैं ।
१. प्राकृत कथा साहित्य :
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प्राकृत साहित्य में सबसे अधिक कथा-ग्रन्थ लिखे गये हैं । कथाओं की शैली और विविध रूपता के लिए प्राकृत साहित्य प्रसिद्ध है । आगम काल से लेकर वर्तमान युग तक प्राकृत में कथाएं लिखी जाती रही हैं | अतः साहित्य पर्याप्त समृद्ध है ।
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प्राकृत कथाओं का प्रारम्भ आगम साहित्य में हुआ है, जहाँ संक्षिप्त रूप में कथा का ढांचा प्राप्त होता है । उसके बाद श्रागम के व्याख्या साहित्य में इन कथाओं को घटनानों और वर्णनों से पुष्ट किया गया है। ऐसी हजारों कथाएं इस साहित्य में प्राप्त हैं । कथा प्रधान कुछ श्रागम गन्थों का परिचय इस प्रकार है :
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प्राकृत गद्य-सोपान
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