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रस्सीहि अंसूमाली। वण्डिसरिच्छा हवइ धरणी । सव्वं पि वायावरणं तातप्पावेमाणो पवहइ असहरिणज्जो मारुओ। वारं वारं परिफुसिगं पि ण सुक्कत्तणमुवेइ सेमजलं । सुपीन पि उदयं रण कयाइ पी पिव अणुहवंति, तण्हालुमाइ ओट्टतालुकंठ विवराई ताहे पत्तसमग्गभोगसामग्गोनो णाणाविहं सी-पेज्जं पिबेंतो वायारणूकूलिअगिहम्मि अल्लीणो सुकई को हम्मिनचएउ चयइ ? तत्थवि मुणी जत्थ कत्थइ ठिो, जं किमवि सीउण्हं भुजतो, उसिणं जलं पिबेंतो, तत्तभूमीले वि अपत्थुम सुवेतो, परममुइयो लक्खिज्जइ । केण अरणहविज्जइ गिम्हकालतत्ती जो अगुवेलं सरेइ परमं पयं ? जस्स सव्वं पि बाहिरं वत्थुजायं बाहिरं तस्स का सुहस्स दुहस्स वा कप्पणा ? महो विचित्तो मुणीण मग्गो।
तहेव पाउससमयो वि ण जेट्टासमीहिं सुसहो, जया वासेंति पयोवाहा, जया-तया हवंति पच्छरण-रविविबारिण दुहिणाणि । हिअयं कंपिन कुणेमारणी विज्जोइ विज्जू। गडगडायमाणो कण्णमूलं भिंदेइ पुण थरिणअसद्दो । पिच्छिला हवंति वत्तणीयो। सवेपारो वहंति पिण्णायो । अब्भंतरिओ वि अक्को अईव अंतरंगगिम्हिमं अणुहवावेइ जाउ, तम्मि को सुही जुवइजणविरहियो चिठ्ठिउखमो ? विहिपरतंतो पउत्थो वि कोइ गिहं संभरेइ रतिदिअहं । उक्किट्ठमंतव्वेप्रणं मारणेइ काइ पवसिमभत्तिमा “पिउ-पिउ' त्ति बप्पीहसद्देण पिन संसरेमाणी मा गणी।
तहि पाउसम्मि वि पच्चक्खाय-पाणभोप्रणा गिरिकंदरासु समल्लीण', ववगयसव-सरीरमाणपचिता, अक्खयबंभचेर-परिवढिप्रलेस्सा, झारणकोट्ठोवगया अलविखन तक्करणारहिन सुहं बेलमइवाहयंति । अग्रो संति सव्वे वि उउणो मुणीणं दाहिणावट्टा ।'
* रयणबालकहा (चन्दनमुनि), अहमदाबाद, 1971, पृ० 178-182
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प्राकृत गद्य-सोपान
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