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________________ पाठ-परिचय : पाठ २२ : साहसी अगडदत्तो उत्तराध्ययनसूत्र पर आचार्य नेमिचन्दसूरि की सुखबोधा टीका में से १२ कथाओं का सम्पादन एवं प्रकाशन मुनि श्री जिनविजय ने प्राकृतकथा-संग्रह नाम से किया है । उन्ही कथाओं में से यह अगडदत्त की कथा का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है । अगडदत्त कथा एक प्रचलित लोककथा है। चौथी शताब्दी में लिखित 'वसुदेवहिण्डी' नामक प्राकृत ग्रन्थ यह कथा मूलरूप में मिलती है। उसके बाद कई लेखकों ने इसे लिखा है । प्रस्तुत कथांश में अगडदत्त के उस साहस - कार्य का वर्णन है, जिसमें उसने एक मदोन्मत हाथी को अपने वश में किया है। देखकर नगर के राजा ने उसका सम्मान किया । उसके इस कार्य को ८८ अन्न मि दिने सो राय-नन्दणो वाहियाए तुरयारूढो वच्चइ ता नयरे कलयलो किं चलिउ व्व समुद्दो किं वा जलियो हुयासणो घोरो । किं पत्तं रिउ - सेन्न तडि-दण्डो निवडियो किं वा ॥२॥ मग्गेणं । जाओ ॥ १ ॥ । एत्थन्तरम्मि सहसा दिट्ठो कुमरेण विहियमणे मय-वाररणो उ मत्तो निवाडियालारण - वर - खम्भो ||३|| मिठेण वि परिचत्तो मारेन्तो सोण्ड - गोयरं पत्ते । सवडं मुहं चलन्तो कालो व्व अकारणे कुद्धो ||४|| तुट्ट-पय-बन्ध-रज्जू संचुणिय-भवरण- हट्ट - देवउलो । खण - मेण पयण्डो सो पत्तो कुमर पुरोति ॥ ५ ॥ तं तारिस- रूव-धरं कुमरं दट्ठूण नायर जेहिं । गहिर- सरें भरिणम्रो प्रोसर ओसर करि पहा ||६|| Jain Educationa International कुमरेण वि नियतुरयं परिचइऊणं सुदक्ख-गइ-गमरणं । हक्कारि इन्द- गइन्दस्स सारिच्छो ||७|| इन्दो For Personal and Private Use Only प्राकृत काव्य-मंजरी www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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