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________________ तो तेसिं पुत्ताणं चितियमेगेणमम्हमेस पिया । पाएण दोहदरिसी धम्मपियो सुइ-समायारो ॥७।। पाणच्चए वि अम्हाणमूवरि न कयावि चितइ विरूवं ।। केणावि कारणेणं ता नूणं एत्थ भवियव्वं ॥८॥ इय परिभाविय तहियं तह कहवि हु नियमईए ववहरियं । जह विढविऊरण कोडी वरिसन्ते पूरिया तेण ।।६।। बीएण चितियमिमं मम पिउणो विज्जए पभूय धणं । ता किं किलेसजाले पाडेमि मुहाए अप्पाणं ॥१०॥ जइ सव्वं पि य विलसामि ता गयो कह मुहं पयंसिस्सं । तम्हा मूलं रक्खिय सेसं भक्खेमि किं बहुणा ॥११॥ तइएणमजोगत्ता विगप्पियं नियमणम्मि मह जणयो। वुड्ढत्तणदोसेहिं संपइ कोडिको जम्हा ॥१२।। तिट्ठा लज्जानासो भयबाहुल्लं विरूवभासित्तं । पाएण मण स्साणं दोसा जायन्ति वुड्ढत्ते ॥१३।। अन्नह कहमम्हे पट्टवेइ देसंतरम्मि सइ विहवे । इय परिभाविय सव्वं वरिसंते भक्खियं दव्वं ॥१४॥ संपत्ता सव्वे वि हु नियसमए वन्नियस्सरूवा ते । पुणरवि तहेव विहिऊरण सेट्ठिणा भोयणाईयं ।।१५।। सयणाईण समक्खं पढमो संठाविमो कुडुम्बपए। बीअो भण्डारपए तइयो किसिमाइकज्जेसु ॥१६॥* 000 * 'आख्यानमणिकोश'-सं०- मुनि पुण्यविजय, से उद्ध त । गाथानुक्रम-आख्यानक ६२, पृ० १७७-७८, गाथा २ से १७ तक । प्राकृत काव्य-मंजरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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