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________________ पाठ २१ : कुसलो पुत्तों पाठ-परिचय : प्राख्यानमरिणकोश में से एक व्यापारी के तीन पुत्रों की कथा यहाँ प्रस्तुत की जा रही है। इस कया में नयसार नामक व्यापारी एक दिन विचार करता है कि उसके तीन पुत्रों में से कुटुम्ब के मुखिया का पद सम्हालने वाला कौन पुत्र होगा ? अतः उनकी बुद्धि और लगन की परीक्षा के लिए वह उन्हें एक-एक लाख रुपये व्यापार के लिए देता है । एक वर्ष के समय के भीतर जो पुत्र उन रुपयों का जैसा उपयोग करता है, उसको वैसा ही काम सौंपा जाता है । यह कथा प्रतीक कथा है, जो यह बतलाती है कि कुल की इज्जत को सुरक्षित रखते हुए उसे और आगे बढ़ाने का प्रयत्न करने वाला पुत्र ही कुशल पुत्र होता है। जो ऐसा नहीं करता उसे कठोर परिश्रम वाला कार्य करना पड़ता है और दूसरे के अधीन रहना होता है। नयरम्मि वसन्तपुरे नायरयजणाण मोरवट्ठाणं । निवसइ सुइववहरणो नयसारो नाम पुरसेट्ठी ॥१॥ अह अन्नया य को किर कुडुम्ब-पय-समुचिो महं होही। इय चिंताए तिण्हं पुत्तारण परिक्खरणनिमित्त ।।२।। निय-सयण-बन्धु-पमुहं नायरयजणं निमंतिउं गेहे । भोयाविऊरण विहिणा तस्स समक्खं भरणइ सेट्ठी ॥३॥ एएसि मह सुयाणं तिष्हं पि हु को कुडुम्ब-पय-जोगो। तं चेव विसेसेरणं जागसि जोगो त्ति तेण त्तं ॥४॥ इय एवं ता तुम्हें समक्खमेए अहं परिक्खेमि । इय भरिणउं वाहरिया तिन्नि वि ते पउर-पच्चक्खं ॥५॥ पत्तेयं पत्तेयं लक्खं दाऊरण दविणजायस्स । ववहारत्थं देसेसु पेसिया तस्स समक्खमिमे ॥६॥ ८४ प्राकृत काव्य-मंजरी For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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