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________________ ............ ....... ............ अर्थ क्रियारूप मलक्रिया काल पुरुष - वचन मारेसु मार आज्ञा म०पु० ए०व० होज्जसु होज्ज उक्खुडइ उखुड कृदन्त पहिचान मूलक्रिया प्रत्यय पणया झुके हुए भू०० अनियमित भणिया ___ कहे हुए भू०० भरण इ+य ३. वस्तुनिष्ठ प्रश्न : सही उत्तर का क्रमांक कोष्ठक में लिखिए : १. मैत्री नहीं करना चाहिए - : (क) सज्जनों से (ख) गुरुओं से (ब) दुर्जनों से (घ) गरीबों से [] २. यदि निर्मल यश चाहते हो तो - (क) दुखियों की निन्दा मत करो (ख) कडुवा न बोलो (ग) अपनी प्रशंसा मत करो (घ) दूसरों को न ठगो [ ] ३. समुद्र को कहा जाता है - (क) दुगुणों की खान (ख) लक्ष्मी का घर (ग) रत्नाकर (घ) घोंघों का घर [ ] ४. लघुत्तरात्मक प्रश्न : प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए : १. यदि अपनी लक्ष्मी चाहते हो तो क्या करना चाहिए? २. संसार में सबसे अधिक दुर्भाग्य क्या है ? ३. किन-किन बातों का घमण्ड नहीं करना चाहिए ? ४. सज्जनों के हृदय में क्या दुख उत्पन्न करता है ? ५. निबन्धात्मक प्रश्न एवं विशदीकरण : (क) पाठ की शिक्षाएँ अपने शब्दों में लिखिए। (ख) गाथा नं०८, १२, एवं १३ का अर्थ समझाकर लिखो। प्राकृत काव्य-मंजरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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