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________________ १. शब्दार्थ : पडिवक्ख: ७० == भूमि कियाराग किराना सर == तालाब तल्लिच्छ - तत्पर वेजयन्ति पताका २. रिक्त स्थानों की पूर्ति (क) शब्दरूप दाहि वासिणा देवउलेहि शत्रु मंजिल = = Jain Educationa International पए दिणेसु संधिवाक्य निच्चमरम्म मंडियाणेय सुगमावयार हयंधयारे आरामुज्जाण (ग) समासपद कलाकुसलो निम्हदिणेसु पापहारो रंगभूमी सीसच्छेओ पइदिय अभ्यास साल तुसार = बर्फ देवउल सोवाण मउन्ह सारहि कीजिए : मूल शब्द दार पअ दिग किला = मन्दिर सीढ़ियाँ किरण सारथी = 1 विभक्ति तृतीया विच्छेद निच्चं + अइरम्मं मंडिय + अणेय सुगम + अवयार हय + अंधयारे आराम + उज्जाण विग्रह कलासु + कुसलो ******** + + + सीसस्स + ओ पड़ + दियह For Personal and Private Use Only मत्तालम्ब= = वरामदड = खम्भा समूह बावड़ी रात्रि -- आशंका थूह संडोह बावी राई संकास ए.व. ब०व० ....... ***** POPD ... = = लिंग नपुं० संधिकार्य समासनाम *****... ..... प्राकृत काव्य-मंजरी www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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