SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाठ १४ : सज्जण-सरूवो पाठ-परिचय : प्राकृत मुक्तक-काव्य साहित्य में वज्जालग्गं ग्रन्थ का महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसके रचयिता कवि जयवल्लभ हैं। उन्होंने लगभग १२ वीं शताब्दी में इस ग्रन्थ में प्राकृत की सैकड़ों गाथाओं का संकलन किया है। इस ग्रन्थ में विभिन्न विषयों से सम्बन्धित गाथाओं के समूह हैं, जिन्हें 'वज्जा' कहा गया है। लगभग ८०० गाथाओं को ६६ समूहों में विभक्त किया गया है। मित्र, स्नेह, धैर्य, साहस, पराक्रम, समुद्र, नगर, बसन्त आदि विषयों के समूह इस ग्रन्थ में हैं। 'सज्जनवज्जा' में सज्जनों के गुणों का वर्णन किया गया है । उन्हीं में से कुछ गाथाएँ यहाँ संकलित हैं । सज्जन व्यक्ति स्वभाव से सरल और परोपकारी होते हैं। उनके दर्शन-मात्र से दुख दूर हो जाते हैं। वे किसी की निन्दा नहीं करते और न अपनी प्रशंसा करते हैं। उनकी मैत्री पत्थर की लकीर की तरह होती है। वे धैर्यशाली और परोपकारी होते हैं । उनमें घमण्ड नहीं होता है। वे अपनी प्रतिज्ञा को निभाने वाले होते हैं । सुयणो सुद्धसहावो मइलिज्जतो वि दुज्जणजणेण । छारेण दप्पणो विय अहिययरं निम्मलो होइ ।।१।। दिठ्ठा हरंति दुक्खं जंपन्ता देन्ति सयलसोक्खाई। एयं विहिणा सुकयं सुयणा जं निम्मिया भुवणे ।।२।। न हसन्ति परं न थुवन्ति अप्पयं पियसयाइ जंपन्ति । एसो सुयणसहावो नमो नमो ताण पुरिसाणं ।।३।। दोहि चिय पज्जत्तं बहुएहिं वि किं गुणेहि सुयणस्स । विज्जुप्फुरियं रोसो मित्ती पाहाणरेहव्व ॥४॥ सेला चलन्ति पलए मज्जायं सायरा वि मेल्लन्ति । सुयणा तहिं पि काले पडिवन नेय सिढिलन्ति ।।५।। ५६ प्राकृत काव्य-मंजरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy