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________________ अभ्यास १. शब्दार्थ : जाम = पहर महाभोगो= महानाग प्राइन्न = भरा हुआ जिन्न = पुराना नियवि = देखकर अडत्ति = शीघ्र मच्छरेण= ईर्ष्या से इणं = यह । रज्जंग = राज्य के अंग चाय = त्याग भोएइ = भोजन करता है पासट्ठिए = पास में स्थित सुरणयं = कुत्ता वइयरं = वृतान्त पमोइनो = आनन्दित पगलंत = झरते हुए करंड = टोकरी विम्हिनो= आश्चर्यचकित वचन लिग स्त्री० ए०व० संधिकार्य अनुस्वार को म २. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए : शब्दरूप मूल शब्द विभक्ति रयणीए रयणी षष्ठी मराण उवहासेण करंडए संधिवाक्य विच्छेद चिंतिउमारद्धो चितिउं+आरद्धो रायाएसं मन्दिरस्संतो मंदिरस्स+अंतो भिभाभिहाणा .... +...." पढममिरणं समासपद विग्रह सुहसंबुद्धो सुहेण+संबुद्धो धरधुरा ..." +...... भयविमुक्कमणो "..."+........ उदारवीरो ................ सलिल कलसे अ+अ=अ समासनाम तृतीया तत्पुरुष .... .... .... ........ ............... .... ५४ प्राकृत काव्य-मंजरो For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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