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________________ तं मच्छरेण करकलियभिभमवलोइउं इयरकुमरा । उवहासेण पयंपन्ति सेणियं भिभसारो त्ति ।।७।। तं दट्ठण नरिंदेण चिंतियं सेरिणएण साह कयं । पढममिणं रज्जंगं संगहिया जेण जयढक्का ।।८।। अह अन्नया परक्कम-चाय-परिक्खरणकए कुमाराण । काराविय परमन्न भोएइ निवो नियकुमारे ।।६।। परमन्न परिवेसिय निवेण लिल्लिक्कियो सूयणवग्गो। सम्मुहमागच्छंतं तं नियवि पलाइया इयरे ॥१०।। सेरिणयकुमरो इयराणमुभयपासट्टिए गहियथाले । सुणयाण खिवइ जेमेइ अप्पणा भयविमुक्कमणो ॥११॥ तव्वइयरमवलोइय चितेइ पमोइनो पुहइपालो । एसो उदारवीरो त्ति कायरा इयरकुमरा मे ॥१२॥ अवर समयम्मि राया बुद्धि-परिक्खरणकए कुमाराण । मुद्देइ गणिय-लड्डुय-करंडए सलिलकलसे य ।।१३।। हक्कारिउं तो ते भणेइ वच्छ! सबुद्धिविहवेण । मुद्दमभंजिय भुजेह मोयगे पियह सलिलं पि ॥१४।। एवं वुत्ता नियबुद्धिगम्विया वि य उवायमलभंता । ते छुह-पिवाससोसियगत्ता दीगत्तमण पत्ता ॥१५॥ सेरिणय कुमरेण पुणो घेत्त पगलंत-कलसबिंदुजलं ।। धुरिणउं करंडए मोयगाण चूरीए भोयविया ॥१६।। इय निसुरिणऊण सेणियमइविहवं विम्हिरो महाराअो। चितेइ जहा जुत्तो एसो रज्जाहिसेयस्स ॥१७॥ ००० प्राकृत काव्य-मंजरी ५३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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