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बीएण भणियमेसा हत्थिरिणया काइयाए विनाया। अन्न कारणा एगम्मि चेव पासम्मि चरणाप्रो ।।६।। अन्नच उवरि इत्थी य अइहवा कह ण नज्जए एयं ।। रुक्खम्मि रत्त-दसियाविलग्गणाओ य मुरिणयमिमं ॥७॥ ते जाव तयण मग्गेण जंति तत्पच्चयत्थमभिउत्तर । ता सरतीरे सव्वं सच्चवियं तेहिं जह भणियं ॥८॥ एत्थंतरम्मि छायाए वीसमंताणमागया एगा। थेरी तेसिं समीवे सिरसंठिय-नीर-भरियघडा ॥६॥ दळूण पुत्तसमवयसमनिए सुयसिणेहसंभमनो । देसन्तरत्थ-पुत्तप्पउत्ति-पुच्छा - पवनाए ॥१०॥ भग्गो घडओ नीरं मिलियं नीरस्स स उ सवियक्का । जाव अच्छइ तत्थमरणर थेरी ता भरिणयमेगेणं ॥११।। जइ तज्जाएतज्जायमिइ वो सच्चयं निमित्तस्स । ता भद्दे! तुज्झ सुप्रो मनो मुहा कि विसाएण? ।।१२।। बीएण भणियं मिलिया न होइ एसा निमित्तगयवाणी।। ता जीवइ तुज्झ सुग्रो भद्दे! गंतु गिहे पेच्छ ।॥१३॥ दटू ण तयं खरणमेगमागया वच्छरूयगसणाहा । परिहाविऊरण आणंदऊण तुट्टा गया सगिहं ॥१४॥ भणियं च भाउरणा कह रण भाय! विवरीयमेरिसं जायं ।। तज्जाएतज्जायं सच्चमिरणं भरिणयमियरेण ।।१५।। नीरं नीरे मिलियं मट्टोए निम्मिनो घडो मिलियो। मायाए मिलइ पुत्तो एस जनो उज्जुमो मग्गो ॥१६॥ मा कुणसु तं विसायं गुरुविसए मा पनोस मुव्वहसु । गुरुणो वि जोग्गयाए कुणन्ति जीवे गुणाहाणं ।।१७।।
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प्राकृत काव्य-मंजरो
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