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पाठ ११ : पाइय-कव्वं पाठ-परिचय:
प्राकृत में पद्य एवं गद्य दोनों में पर्याप्त साहित्य लिखा गया है। ईसा की प्रथम शताब्दी में गाथासप्तशती जैसी प्राकृतकाब्य की रचना प्रसिद्ध हो चुकी थी। उसके बाद प्राकृत में कथाकाव्य, मुक्तककाव्य, चरितकाव्य आदि शैलियों में कई काव्य रचनाएँ आधुनिक युग तक लिखी जाती रहीं। प्राकृत की इन सैकड़ों काव्य रचनाओं में से कुछ ग्रन्थों के काव्यांश इस पुस्तक में संकलित किये गये हैं ।
इन काव्यांशों से प्राकृत का स्वरूप, महत्त्व एवं उसकी मधुरता प्रगट होती है । प्राकृत के कई कवियों ने प्राकृत भाषा एवं उसके काव्य की प्रशंसा की है। उनमें से कुछ गाथाएँ यहाँ प्रस्तुत हैं ।
पाइयकव्वस्स नमो, पाइयकव्वं च निम्मियं जेण । ताहं चिय पणमामो, पढिळण य जे वि याणन्ति ॥१॥ देसिय-सह-पलोट्ट, महुरक्खर-छंदसंठियं ललिपं । फुड-वियड-पायडत्थं, पाइयकव्वं पढेयव्वं ॥२॥ पाइयकव्वम्मि रसो जो जायइ तह व छेयभरिणएहि । उययस्स व वासियसीयलस्स तित्ति न वच्चामो ॥३॥ णवमत्थ-दसण संनिवेस-सिसिराम्रो बन्धरिद्धीनो। अविरलमिणमो प्रा-भुवण-बन्धमिह णवर पययम्मि ।।४।। सयलामो इमं वाया विसन्ति एत्तो यन्ति वायायो। एन्ति समुइंच्चिय गान्ति सायरामो च्चिय जलाइं ॥५॥ गूढत्थ-देसि-रहियं सुललिय-वण्णेहिं विरइयं रम्म । पाइय-कव्वं लोए कस्स न हिययं सुहावेइ ॥६।।*
* गाथा १, २, ३ 'वज्जालग्गं' से गाथा ३१, २८, २१; गाथा ४ एवं ५ 'गउडवहो'
से माथा ६२ एवं ६३ तथा गाथा ६ 'पंचमीमाहात्म्य' से।
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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