SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियम : कर्मरिण प्रयोग नियम ४६ : कर्मवाच्य के कर्ता में तृतीया विभक्ति और कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है । क्रिया का लिंग, वचन और पुरुष कर्म के अनुसार के होता है । जैसे:सामान्य वाक्य कर्म वाच्य सो गन्थं पढइ = तेण गन्थो पढिज्जइ अहं घडं करामि __= मए घडो करीअइ नियम ४७ : कर्मवाच्य या भाववाच्य बनाने के लिए मूलक्रिया में ईन अथवा इज्ज प्रत्यय लगता है । उसके बाद अन्य प्रत्यय लगते हैं। जैसे :मूल क्रिया वाच्य प्रत्यय व.का. भू.का. विधि/आज्ञा पढ+ ईअ पढीम पढीअइ पढीअईअ पढीअउ पढ+ इज्ज पढिज्ज पढिज्जइ पढिज्जीअ पढिज्जउ नियम ४८ : भविष्यकाल में वाच्य-प्रत्यय ईअ या इज्ज नही लगते हैं। नियम ४६ : भूतकाल में दोनों वाच्य प्रयोगों में भूतकालिक कृदन्तों का भी प्रयोग होता है । उनमें वाच्य-प्रत्यय नहीं लगते हैं । जैसे : तेण छत्तो दिट्ठो, तेण बाला दिट्ठा, तेण मित्तं दिट्ठ। नियम ५० : भाववाच्य में कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है। वाक्य में कर्म नहीं रहता और सभी कालों में क्रिया अन्य पुरुष एकवचन की ही प्रयुक्त होती है। जैसे :कर्ता में तृ.वि. व.का. भू.का. विधि/प्राज्ञा अम्हेहि हसिज्जइ हसिज्जीअ हसिहिइ हसिज्जउ सीसेहि ........ मए तुमए गरेण ......... भ.का. तेण .... .... प्राकृत काव्य-मंजरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy