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________________ द्वितीया विभक्तिः नियम ३१ : द्वितीया विभक्ति के एकवचन में अम्ह का ममं एवं तुम्ह का तुम रूप बनता है। नियम ३२ : सभी सर्वनामों एवं संज्ञा शब्दों में द्वितीया विभक्ति के एकवचन में () लगता है तथा दीर्घ स्वर ह्रस्व हो जाते हैं। जैसे :सर्व०- तं, कं, इम, ता=तं, का=कं, इमा=इमं । पु० -- बालं, पुरिसं, सुधि, सिसु। नपु.- जलं, एयरं, वारि वत्थु। स्त्री०-- मालं, जुवई, बहुं, सासु। नियम ३२ : सभी सर्वनाम एवं संज्ञा शब्दों के प्रथमा विभक्ति बहुवचन के रूप ही द्वितीया विभक्ति बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं। जैसे :सर्व० - ते, के, अम्हे, तुम्हे, कारो, इमानो, तारिण, इमाणि । पु० - पुरिसो, कविणो, सिसुरणो। नपु०- जलारिण, रणयराणि, वारीरिण, वत्थूरिण । स्त्री०- मालामो नईश्रो, बहूओ, सासूत्रो। सप्तमी विभक्तिः निमय ३२ : सभी पु० सर्वनामों तथा पु०, नपु० के इ एवं उकारान्त शब्दों में सप्तमी एकवचन में म्मि प्रत्यय लगता है । जैसे :सर्व० - अम्हम्मि, तुम्हम्मि, तम्मि, इमम्मि, कम्मि । संज्ञा - सुधिम्मि, सिसुम्मि, वारिम्मि, वत्थुम्मि । निमय ३५ : स्त्री० सर्वनामों अकारान्त पु०, नपुं० शब्दों एवं स्त्री० शब्दों में सप्तमी एकवचन में ए प्रत्यय लगता है। इ एवं उ दीर्घ हो जाते हैं । जैसे :सर्व० -ताए इमाए, काए। पु० - पुरिसे छत्ते, सोसे, जले,फले । स्त्री० - बालाए, साडीए, बहूए, जुवईए, धेण ए। निमय ३६ : सभी सर्वनामों एवं संज्ञा शब्दों में सप्तमी बहुवचन में सु प्रत्यय लगता है । अकारान्त शब्दों में एकार हो जाता है तथा ह्रस्व स्वर दीर्घ हो जाते हैं। जैसे :सर्व० -- अम्हेसु, तेसु, तासु। पु०-- पुरसेसु, जलेसु सुधीसु, सिसूसु । स्त्री० -- बालासु, जुवईसु, धेणू सु सासूसु । प्राकृत काव्य-मंजरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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