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तृतीया विभक्ति :
नियम ३७ : तृतीया विभक्ति के एकवचन में ग्रम्ह का मए एवं तुम्ह का तुमए रूप बनता है ।
नियम ३८ : पु० एवं नपुं० सर्वनाम तथा अकारान्त शब्द रूपों में तृतीया विभक्ति के एकवचन में शब्द के अ को ए होता है तथा रग प्रत्यय जुड़ता है । जैसे :- सर्व० - तेरण, इमेल, केरण । संज्ञा - पुरिसेण, छत्तेल, जले ।
नियम ३ : पु० तथा नपुं० इ एवं उकारान्त शब्दों के आगे रखा प्रत्यय जुड़ता है । कविणा, साहुणा, वारणा, वत्थुरा ।
जैसे :-- नियम ४० : स्त्री० सर्वनाम एवं संज्ञा शब्दों में तृतीया विभक्ति के एकवचन में ए प्रत्यय जुड़ता है । हस्व स्वर दीर्घ हो जाते हैं । जैसे :-- सर्व संज्ञा - बालाए, नईए, बहूए । नियम ४१ : सभी सर्वनामों एवं सभी संज्ञा शब्दों में
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ताए, इमाए, काए ।
तृतीया विभक्ति के बहुवचन में तथा हस्व स्वर दीर्घ हो जाते
हि प्रत्यय लगता है । शब्द के श्र को ए हैं । जैसे :--
पंचमी विभक्ति :
नियम ४२ : पंचमी विभक्ति एकवचन में ग्रम्ह का ममाश्र एवं तुम्ह का तुमाओ रूप बनता है ।
नियम ४३ : पु० एवं नपु ं० सर्वनामों के दीर्घ होने के बाद उनमें श्री प्रत्यय जुड़ता है । जैसे :-- ताश्री, इमाश्री, काश्रो । नियम ४४ : स्त्री० सर्वनाम एवं संज्ञा शब्दों ह्रस्व होकर तथा नपुं० एवं पु० शब्दों में पंचमी विभक्ति के एकवचन में तो प्रत्यय जुड़ता है । जैसे स्त्री० - ता = तत्तो, इमा इमत्तो, बाला - बालत्तो, बहुत्तो । पु०- पुरिसत्तो, कवित्तो, सिसुत्तो, जलत्तो, वारितो श्रादि ।
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नियम ४५ : सभी सर्वनामों एवं संज्ञा शब्दों में दीर्घ स्वर होने के बाद पंचमी विभक्ति के बहुवचन में हितो प्रत्यय जुड़ता है । जैसे :
श्रम्हाहितो, ताहिंत, पुरिसाहितो, बालाहितो. बहूहिंतो श्रादि ।
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संज्ञा ( पु० ) - पुरिसेहि, छत्तेहि, कवीहि, सिसूहि (नपु. ) - वारीहि, वत्थूहि स्त्री० - बालाहि . नईहि, बहूहि । सर्व० - अम्हेहि, तेहि, ताहि ।
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प्राकृत काव्य - मंजरी
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