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६. दिरणचरिया . [तृतीया विभक्ति]
सुज्जस्स किरणेण सह जणा जग्गन्ति । बाला जणएण सह उट्ठन्ति, जलेण मुहं पक्खालन्ति । जणा मन्दिरं गच्छन्ति । तत्थ ते देवं गयणेहिं पासन्ति । ते सिरेण हत्थेहि देवं नमन्ति । मुहेण देवस्स थुई पढन्ति । ते पुफ्फेहि फलेहि य देव अच्चन्ति । जणा आयरियेण सत्थं सुणन्ति । सत्थेण बिणा मन्दिरस्स सोहा ण त्थि । जहा धरणेण अहवा गुणेण बिणा नरस्स सोहा णत्थि ।
देवं अच्चिऊरण जगा भुजन्ति । ते भिच्चेण सह प्रावणं गच्छन्ति । बालो मित्तेण सह विज्जालयं गच्छइ । जुवई हत्थेहिं वत्थं धोवइ । सा साडीए सोहइ । मामा सिसुणो सह खेलइ। सिसू तत्थ पएण चलइ । सो मित्तेण सह खेलइ, कंदुएण रमइ । तेण तं सुक्खं होइ । सो मापाए बिरणा रण भुजइ ।
__मात्रा जरेण पीडइ । ताए गिहस्स कज्ज ण होइ। तुमए ताप सेवा होइ । सा दहिणा सह पथ्थं गेण्हइ। घरेण बिरणा सुहं णस्थि । जणा गेहे वसन्ति । ताण हेण गिहस्स सोहा होइ ।
अभ्यास
(क) पाठ में से तृतीया विभक्ति के शब्दरूप छांटकर उनके अर्थ लिखो।
(ख) प्राकृत में अनुवाद करो :
यह कार्य मेरे द्वारा होता है । वह कार्य उसके द्वारा होता है । वह बालक के साथ जायेगा। हम शिष्य के साथ भोजन करते हैं। गुरु छात्रों के साथ रहता है। कवि के द्वारा कार्य होता है। वह साधु के साथ पढ़ता है। माता बच्चों के साथ रहती है। बालिका के साथ उसका भाई जाता है। बच्चे मालाओं से खेलते हैं। फलों के बिना वह भोजन नहीं करता है। मैं दही के साथ भोजन करता हूँ। वस्तुओं के साथ क्या है ?
प्राकृत काव्य-मंजरी
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