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पाठ ४ : कृदन्त
सम्बन्ध कृदन्त अहं पढिऊरण खेलामि
मैं पढ़कर खेलता हूँ। तुमं खेलिऊण पढसि
तुम खेलकर पढ़ते हो। सो हसिऊरण पुच्छ
वह हँसकर पूछता है। सा सयि ऊरण जग्मइ
वह सोकर जागती है। मित्तं जम्गिऊरण पढइ
मित्र जागकर पढ़ता है । बालो पुच्छिऊरण जाणइ = बालक पूछकर जानता है । बाला बोल्लिऊरण हसइ । बालिका बोलकर हँसती है । अम्हे पढिऊरण खेलिहामो = हम सब पढ़कर खेलेंगे।
ईत्वर्थ कृदन्त अहं पढिउं जग्गामि
मैं पढ़ने के लिए जागता हूँ। तुम खेलिउं पुच्छसि
तुम खेलने के लिए पूछते हो। सो हसिउं पढसि
वह हँसने के लिए, पढ़ता है। सा सपिङ पुच्छ
वह सोने के लिए पूछती है। मित्तं जग्गिउं पढइ
मित्र जगने के लिए पढ़ता है । बालो नमिउं गच्छई
बालक नमन करने के लिए जाता है। बाला बोल्लिङ पुच्छइ - बालिका बोलने के लिए पूछती है । अम्हे पढिउं जम्गिहामो = हम सब पढ़ने के लिए जागेंगे।
वर्तमाम कृदन्त पढन्तो बालो गच्छइ = पढ़ता हुआ बालक जाता है । पढन्तो जुवई नमइ
पड़ती हुई युवति नमन करती है । पढन्तं मितं हसइ
पढ़ता हुआ मित्र हँसता है । हसमारणो छत्तो खेलइ
हँसता हुआ छात्र खेलता है । हसमारणी बाला गच्छद = हँसती हुई बालिका जाती है। हसमारणं मित्तं पढइ
हँसता हुभा मित्र पढ़ता है।
प्राकृत काव्य-मंजरी
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