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८. क्रोध प्रेम को नष्ट करता है, अहंकार विनय का नाशक (होता है), कपट मित्रों
को दूर करता है, लोभ सब (गुणों का) विनाशक (होता है) ।
६. (व्यक्ति) क्षमा से क्रोध को नष्ट करे, विनय से ज्ञान को जोते, सरलता से कपट
को तथा संतोष से लोभ को जीते।
१०. ज्ञानपूर्वक अथवा अज्ञानपूर्वक अनुचित कार्य को करने वाला (व्यक्ति) अपने
को तुरन्त रोके (और फिर) वह उसको दुबारा न करे ।
११. जो (व्यक्ति) कुटिल (बात) नहीं सोचता है, कुटिल (कार्य) नहीं करता है,
कुटिल (वचन) नहीं बोलता है तथा (जो) अपने दोष को नहीं छिपाता है, उसके आर्जव धर्म होता है । (जीवन में सरलता होती है)।
१२. सत्य (बोलने) में तप होता है, सत्य (बोलने) में संयम होता है तथा शेष
(अन्य) सद्गुण भी (पालित होते हैं)।
१३ क्रियाहीन ज्ञान निकम्मा (होता है तथा) अज्ञान से (की हुई) क्रिया भी
निकम्मी (होती है । प्रसिद्ध है कि) देखता हुआ (भी) लंगड़ा (व्यक्ति) और दौड़ता हुआ (भी) अन्धा व्यक्ति (आपस के बिना सहयोग के आग में) भस्म हुआ।
१४ (आचार्य ऐसा) कहते हैं- (कि ज्ञान और क्रिया का) संयोग सिद्ध होने पर
फल (प्राप्त होता है) क्योंकि (ज्ञान अथवा क्रियारूपी) एक पहिए से (कर्त्तव्य रूपी) रथ नहीं चलता है। (समझो) अन्धा और लंगड़ा वे दोनों जंगल में इकट्ठ मिलकर जुड़े हुए (आग से बचकर) नगर में गये ।
१५. चरित्रहीन (व्यक्ति) के द्वारा अति अधिक रूप से भी पढ़ा हुआ श्रुत क्या
(प्रयोजन) सिद्ध करेगा? जैसे अन्धे (व्यक्ति) के द्वारा जलाए गए भी लाखों, करोड़ों दीपक (उसके लिए क्या प्रयोजन सिद्ध करेंगे ?)
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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