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________________ २-३. अत्यन्त हरे-भरे उपवनों से सुशोभित समीप भाग वाले, बरामदों और झरोखों से युक्त, श्रेष्ठ चित्रों से युक्त, अनेक मंजिलों वाले, बर्फ की तरह सफेद, मानों नगरवासियों के यश के खंभों की तरह, भवनों से वह नगर हमेशा अत्यन्त रमणीय (रहता था)। ४-५ वहाँ अन्य-अन्य देशों से आये हुए व्यापार-कला में निपुण व्यापारी लोगों से उस नगर के निवासियों के द्वारा प्रतिदिन किये जाते हुए व्यापार से तथा बहुमूल्य सैंकड़ों किरानों से भरे हुए अन्त-भाग वाले अनेक बाजारों से (वह नगर) सुशोभित था। ६. ऊँचे मकर-तोरणों पर पवन से उड़ती हुई सफेद ध्वजाओं से बढ़ी हुई सुन्दरता वाले देव-मंदिरों से सुशोभित, सुन्दर प्रदेश वाला (वह नगर था)। ७. (वह नगर) श्वेत कमल के समूह से सुशोभित अनेक विशाल सरोवरों से और सीढ़ियों द्वारा सरलता से उतरने योग्य हजारों वापियों से (युक्त था)। ८. (वह नगर) श्रेष्ठ तिराहे, चौराहे, चौक, बगीचे, उद्यान, दीपिका आदि के द्वारा पद-पद पर देवताओं के भी मन को हरण करने वाला था। ६. समस्त नगरों में प्रधान एवं नगर के गुणों से युक्त देवताओं के नगर की आशंका उत्पन्न करने वाला (वह) श्री हस्तिनापुर नामक नगर था। १०. जहाँ पर प्रिय बोलने वाले, धार्मिक क्रियाओं में लीन, चतुरता, त्याग और भोगों से युक्त तथा कलाओं में कुशल लोग रहते थे। ११. जिस नगर में नाना प्रकार के प्रयोजनों से प्रेरित इधर-उधर नित्य घूमते हुए जन-समुदाय से राज-मार्ग कठिनता से चलने वाले हो गये थे। १२. जहाँ पर करोड़ों पताकाओं से पूरा आकाश-मार्ग ढक जाने से गर्मी के दिनों में भी लोग सूर्य की किरणों के ताप को अनुभव नहीं करते थे। प्राकृत काव्य-मंजरी १५७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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