SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५. बन्दरिया ने उसे कहा- 'मेरी गोद में सिर रखकर सो जाओ।' उस (आदर्मी) के द्वारा यही किया गया। (तब) सिंह उस बन्दरिया से कहता है। ६-७. 'मैं अत्यन्त भूख से युक्त हूँ। मनुष्य को (नीचे) छोड़ दो। मैं तुम्हारा अच्छा मित्र हो जाऊँगा और कभी तुम्हें उपकृत कर दूंगा । तुम एक कृतज्ञता-रहित खराब आदमी की क्यों रक्षा कर रही हो ?' तब बन्दरिया ने कहा- 'मैं शरणागत को नहीं देती हूँ। ८. (तब) बहुत से प्रतिकूल बचन कहकर (वहाँ पर) स्थित (वह) सिंह भी दुखी हो गया । और (तभी) जगा हुआ वह वनचर (आदमी) कहता है-- 'हे अम्बे! (बन्दरिया, अब) तुम सो जाओ।' १-१०. उसकी गोद में सिर रखकर वह बन्दरिया भी सो गयी। (तब) सिंह कहता है- 'हे मनुष्य! मुझे यह बन्दरिया दे दो। इसको खाकर मैं चला जाऊँगा। तुम्हारा भी रास्ता (साफ) हो जायेगा।' यह सुनकर उस मनुष्य के द्वारा गोद से वह बन्दरिया (नीचे) फेंक दी गयो । ११. किन्तु वह बन्दरिया (अपनी) चतुरता से एक डाली में लटक गयीं। तब वह कहती है- (हे मनुष्य!) 'तुम्हारे मनुष्य-जन्म ओर मनुष्य की कृतघ्नता के लिए धिक्कार है।' १२. (प्रातःकाल) उस मार्ग से बहुत बड़ा काफला (यात्रिओं का समूह) निकला। उसकी आवाज से सिंह वहाँ से भाग गया और वह वनचर (आदमी) घर को चला गया। 000 पाठ १७, नगर-वर्णन १. (वह नगर) शत्रुओं को भय पैदा करने वाले विशाल किले से घिरा हुआ, सुन्दर, रमणीक मकर-तोरणों, गोपुरों और दरवाजों से युक्त (था)। प्राकृत काव्य-मंजरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy