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पाठ १५ : सफल मनुष्य-जन्म
१. किसी एक श्रेष्ठ नगर में कलाओं में कुशल कोई (एक) व्यापारी था। (वह)
गुरुओं के पास में रत्न-परीक्षा ग्रन्थ का अभ्यास करता है।
२. इसके बाद किसी एक दिन वह व्यापारी सोचता है कि अन्य रत्नों से क्या
? मणियों में शिरोमणि, सोचने मात्र से धन देने वाला चिन्तामणि (रत्न) है।
३. तब से वह उसके लिए अनेक स्थानों में खानों को खोदता है। फिर भी विभिन्न
उपायों को करने से भी वह चिन्तामरिण उसे प्राप्त नहीं होता है।
४. किसी ने (उसे) कहा- 'जहाज पर चढ़कर रत्नद्वीप में जाओ। वहाँ आशपुरी
देवी है । (वह) तुम्हें इच्छित (फल) देगी।'
५. वहाँ रत्नद्वीप में इक्कीस दिनों में पहुंचा हुआ वह उस देवी की आराधना करता
है। संतुष्ट हुई वह (देवी) इस प्रकार (उसे) कहती है -
६. 'हे भद्र ! तुम्हारे द्वारा आज मैं किस कार्य से पूजी गयी हूँ ?' वह कहता है
'हे देवि! यह प्रयत्न चिन्तामणि रत्न के लिए है।'
७. तब उस (संतुष्ट) देवी के द्वारा उस रत्न-व्यापारी को चिन्तामणि रत्न दे दिया
गया। संतुष्ट हुआ वह (व्यापारी) अपने घर जाने के लिए जहाज पर चढ़ गया।
८. जहाज के एक स्थान पर बैठा हुआ (वह) व्यापारी जब समुद्र के बीच में आया
तभी पूर्व दिशा में पूर्णिमा का चाँद निकल आया।
६. उस चाँद को देखकर वह व्यापारी अपने मन में सोचता है- 'चिन्तामणि रत्न
का प्रकाश अधिक है अथवा चन्द्रमा का ?'
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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