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४. सज्जन व्यक्ति के अनेक गुणों से क्या? दो(गुण) ही पर्याप्त हैं- बिजली की तरह
(उनका क्षणिक) क्रोध एवं पत्थर की लकीर की तरह (उनकी) मित्रता ।
५. प्रलय में पर्वत विचलित हो जाते हैं एवं समुद्र भी मर्यादा को त्याग देते हैं
(किन्तु) उस (आपत्ति) समय में भी सज्जन व्यक्ति (अपनी) प्रतिज्ञा को शिथिल नहीं करते हैं।
६. यद्यपि ब्रह्मा के द्वारा सज्जन व्यक्ति चन्दन के वृक्ष की तरह फल-रहित (धन
रहित) बनाये गये हैं। फिर भी (वे) अपने शरीर से (भी) लोगों का परोपकार करते हैं।
७. सूर्य कहाँ उगता है ? (और) कमल के वन कहाँ विकसित होते हैं ? संसार में
सज्जन लोगों का स्नेह (उनसे) दूर रहने वालों के लिए भी कम नहीं होता है ।
८. सज्जन पुरुषों के हृदय विशाल वृक्षों की शाखाओं की तरह फल-समृद्धि (वैभव)
में अच्छी तरह नम्र (और) फल (धन) के अभाव में ऊँचे (स्वाभिमानी) होते हैं।
६. सज्जन पुरुषों का कार्यरूपी वृक्ष (उनके) हृदय में पैदा हुआ, वहाँ पर ही बढ़ा
और लोक में प्रकट नहीं हुआ। (वह केवल) फलों (परिणाम) के द्वारा देखा जाता है।
१०. सज्जन लोग स्पष्ट रूप से दूसरों के कार्य में तल्लीन और अपने कार्य के प्रति
उदासीन होते हैं । (जैसे) चन्द्रमा पृथ्वी को सफेद करता है, (किन्तु) अपनी कालिमा को नहीं मिटाता है।
११. सत्य बोलने वाले, प्रतिज्ञा को पूरा करने वाले, बड़े कार्यों के भार को वहन करने
बाले धैर्यशाली, प्रसन्नमुख सज्जन लोग चिरकाल तक जीवित रहने वाले हों।
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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