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चाहिए | वह कब गृह-लक्ष्मी कहलाती है । यथा
खण्डकाव्य :
प्राकृत में खण्डकाव्य कम ही लिखे गये हैं। क्योंकि कवियों की मुख्य प्रवृत्ति जीवन को सम्पूर्णता से चित्रित करना रहा है । कथा एवं चरित ग्रन्थों के द्वारा उन्होंने कई बड़े-बड़े ग्रन्थ प्राकृत में लिखे हैं । किन्तु प्राकृत में कुछ खण्डकाव्य भी उपलब्ध हैं, जिनमें मानव जीवन के किसी एक मार्मिक पक्ष की अनुभूति को पूर्णता के साथ व्यक्त किया गया है । १७ वीं शताब्दी के निम्न प्राकृत खण्डकाव्य उपलब्ध हैं ।
भुजइ भुजियसेसं सुप्पइ सुत्तम्मि परिय सयले । पढमं चेय विबुज्झइ घरस्स लच्छी न सा घरिरणी ॥
कंसवहो :- श्रीमद्भागवत के आधार पर मालावर प्रदेश के निवासी ग्रन्थ की रचना की थी । विद्वान् थे । इनकी कई
श्री रामपारिंणवाद ने सन् १६०७ के लगभग इस कवि प्राकृत, संस्कृत और मलयालम के प्रसिद्ध रचनाएँ इन भाषाओं में प्राप्त हैं ।
कंसवहो ( कंसवध ) में चार सर्ग एवं २३३ पद्य हैं । इस ग्रन्थ के कथानक में उद्धव, श्री कृष्ण और बलराम को धनुषयज्ञ के बहाने गोकुल से मथुरा ले जाता है । वहाँ श्रीकृष्ण कंस का वध करते हैं, जिसका वर्णन कवि ने बहुत हो प्रभावक ढंग से किया है । यह एक सरस काव्य है, जिसमें लोक-जीवन, वीरता और प्रेमतत्त्व का निरूपण हुआ है ।
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उसारिरुद्ध :- यह खण्डकाव्य भी रामपाणिवाद द्वारा रचित है । इसमें बाणासुर की कन्या उषा का श्रीकृष्ण के पौत अनिरुद्ध के साथ विवाह होने की घटना वरिणत है । प्रेम काव्य के रूप में इसका चित्रण हुआ
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प्राकृत काव्य - मंजरो
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