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________________ सात सौ की संख्या के आधार पर इसका नाम गाथासप्तशती रखा गया है। इस ग्रन्थ में किसी एक ही विषय की उक्तियां नहीं हैं। अपितु शृगार, नोति, प्रकृतिचित्रण, सज्जन-दुर्जन के स्वभाव, सुभाषित आदि अनेक विषयों से सम्बन्धित गाथाएँ हैं। अधिकतर लोक-जीवन के विविध चित्रों की अभिव्यक्तियाँ इन गाथाओं के द्वारा होती हैं । नायक-नायिकाओं की विशेष भावनाओं और चेष्टाओं का चित्रण भी इस ग्रन्थ की गाथाएँ करती हैं। वज्जालग्गं :- प्राकृत का दूसरा मुक्तक-काव्य वज्जालग्गं है। कवि जयवल्लभ ने इस ग्रन्थ का संकलन किया है। इसमें अनेक प्राकृत कवियों की सुभाषित गाथाएँ संकलित हैं । कुल गाथाएँ ७६५ हैं, जो ६६ वज्जात्रों में विषय की दृष्टि से विभक्त हैं। यहाँ 'वज्जा' शब्द विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । वज्जा देशी शब्द है, जिसका अर्थ है- अधिकार या प्रस्ताव । एक विषय से सम्बन्धित गाथाएँ एक वज्जा के अन्तर्गत संकलित की गई है। जैसे वज्जा नं. ४ का नाम है- 'सज्जणवज्जा'। इसमें कुल १७ गाथाएँ एक साथ हैं, जिनमें सज्जन व्यक्ति के सम्बन्ध में ही कुछ कहा गया हैं। वज्जालग्गं गाथासप्तशती से कई अर्थों में विशिष्ट है । इसमें विषय की विविधता है। शृगार एवं सौन्दर्य का चित्रण ही जीवन में सब कुछ नहीं है। व्यक्ति की अपेक्षा समाज के हित का चिंतन उदारता का द्योतक है। इस मुक्तक-काव्य में साहस, उत्साह, न ति, प्रेम, सुगृहणी, ( ऋतु, कर्मवाद आदि अनेक विषयों से सम्बन्धित गाथाएँ हैं। विभिन्न प्रकार के पशु, पुष्प एवं सरोवर, दीपक, वस्त्र आदि उपयोगी वस्तुओं के गुण-दोषों का विवेचन भी इस ग्रन्थ में हुआ है। अतः यह काव्य मानव को लोकमङ्गल की ओर प्रेरित करता है। आदर्श गृहणी, अच्छी नागरिकता की जननी होती है । यह काव्य हमें बतलाता है कि गृहस्वामिनी को कैसा होना प्राकृत काव्य-मंजरी १३७ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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