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में विभक्त किया जा सकता हैं : (१) मुक्तक काव्य (२) खण्ड-काव्य एवं (३) महाकाव्य । प्राकृत काव्य के इन तीनों प्रकार के ग्रन्थों का परिचय एवं मूल्यांकन प्राकृत साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में किया गया है । इन ग्रन्थों के सम्पदकों ने भी उनके महत्त्व आदि पर प्रकाश डाला है । कुछ प्रमुख प्राकृत काव्य ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत है ।
मुक्तक काव्य :
मुक्तक काव्य में प्रत्येक पद्य रसानुभूति कराने में समर्थ एवं स्वतन्त्र होता है । इस दृष्टि से मुक्तक काव्य की रचना भारतीय साहित्य में बहुत पहले से होती रही है । प्राकृत साहित्य में यद्यपि सुभाषित के रूप में कई गाथाएँ विभिन्न ग्रन्थों में प्राप्त होती हैं; किन्तु व्यवस्थित मुक्तक काव्य के रूप में प्राकृत के दो ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं -- ( १ ) गाथासप्तशती एवं (२) वज्जालग्गं ।
गाथासप्तशती :- प्राकृत का यह सर्व प्रथम मुक्तककोश है। इसमें अनेक कवि और कवयत्रियों की चुनी हुई सात सौ गाथाओं का संकलन है । यह संकलन लगभग प्रथम शताब्दी में कविवत्सल हाल ने लगभग एक करोड़ गाथाओं में से चुनकर तैयार किया है । यथा
सत्त सत्ताई कइवच्छलेर कोडीन मज्झप्रारम्मि । हा लेख विरइना खि सालंकाराणं गाहाणं ॥
- गाथा. १ / ३ गाथासप्तशती की गाथाओं की प्रशंसा अनेक प्राचीन कवियों ने की है । बाणभट्ट ने इस ग्रन्थ को गाथाकोश कहा है । इस ग्रन्थ का स्वरूप मुक्तक काव्य ग्रन्थों की परम्परा में अपना विशेष स्थान रखता है । इसमें गाथाओं का चयन करके उन्हें सौ-सौ के समूह में गुफित किया गया है ।
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प्राकृत काव्य-मंजरो
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