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________________ (घ) क्रियारूप दीवेइ मूलक्रिया ............ पेच्छह ........ ........ हवदि www.... "m.... .......more ........ ............ ......rary ........ ....reso.... .... ........ पजहदि होदि गस्सदि होह कृदन्तरूप अकहंता ठवेदु पधिदो अर्थ प्रत्यय त पहिचान न कहते हुए व०० स्थापित करने के लिए हे०कृ० प्रसिद्ध भू०० मूलक्रिया कह व पघ ए+दु [ ] ३. वस्तुनिष्ठ प्रश्न : सही उत्तर का क्रमांक कोष्ठक में लिखिए: १. सारे जग को प्रकाशित करता है - (क) दीपक (ख) ज्ञान (ग) सूर्य (4) चन्द्रमा २. सभी शिक्षा निरर्थक हो जाती है - (क) क्रोधी शिष्य की (ख) रोगी शिष्य की (ग) विनय से रहित शिष्य की (घ) गरीव शिष्य की ४. लघुत्तरात्मक प्रश्न : प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए : १. दुर्जन की संगति से सज्जन के गुण कसे बदल जाते हैं ? २. गुणों का वास्तविक प्रकाशन किससे होता है ? ३. क्रोध करने से क्या नुकसान होता है ? ५. निबन्धात्मक प्रश्न एवं विशदीकरण : (क) पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए । . (ख) गाथा नं० २, ४, ६ एवं १३ का अर्थ समझाकर लिखिए । प्राकृत काव्य-मंजरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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