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________________ ग्रह संपेसइ राया मयपायं करिवरं भरगावइ य । निच्चं पि गय पवित्ती कहियव्वा मरण - परिहीणा ||१८|| ११४ ते विपइवासरं पि हु कहेंति रायस्स हत्थिवृत्तंतं । अह अन्नया गइंदे मए भरणावर भरहपुत्तो ||१६|| देव, गइंदो न चरइ, न चलइ नो ससइ न वि य नीससइ । न पियइ न नियइ नवरं चिट्ठइ निच्चेट्ठ-संठारणो ।।२०।। तो पुहइवई पभरणइ रे रे, तमणु जंपन्ति ते वि सामी एवं किं भूयो भरिणयं पेसवह कूवयं महुरपाणियं निययं । हुत्त मत्तो देव ! कूवप्रो पामरत्तणो ||२२|| अम्हच्चन तो तं पेससु नायरयकूवियं निययं । जेरण आगच्छइ तम्मग्गलग्गप्रो सामिय ! सयहो ।।२३॥ करिवरो मत्रो ? वज्जरइ नो म्हे ।। २१ ।। अवरमकंडे वणखण्डमेत्थ पुव्वाए तं पि पच्छिम | कायव्वं तेरण तयं पि गाममुच्चालिऊण कयं ||२४|| अग्गिं सूरं च विणा वि पायसं सिज्झवेह पट्ठिविए । खुद्द एसो उक्कुरुडिया निप्फाइया खीरी ।।२५।। सन्वत्थ विकेरण कयं ? ति रोहयो उत्तरम्मि वत्तव्वे । रंजिय-हियो वाहरइ अन्नया एउ मह पासे ॥ २६॥ तप्पभिइ पक्खवाओ रन्नो तम्मि महं समुप्पन्नो । संठाविप्रो य सव्वेसिमुवरि मंती मइगुणेण ॥ २७॥ * 000 * 'आक्खानकमणिकोस' सं०- मुनि पुण्यविजय से उद्धृत । गाथानुक्रम - आख्यानक १ गाथा - १०, १४, १५, २३-२४, २५ से ३४, ४५,४६, ५० से ५६ एवं ६२ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only प्राकृत काव्य - मंजरी www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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