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इय भरिणय गए भरहे बालत्तणयो य रोहएण तो। सिप्प-सरि-बालुयाए विरिणम्मिया तेरण उज्जेणी ।।७॥ एथंतरम्मि राया बलरेणुभएण अग्गए होउं । तुरयारूढो जा एइ तत्थ रोहेण तो रुद्धो ८॥ हे आसवार, पुरो उज्जेणी-हट्टमग्ग-मज्मेण । जियसत्त राय-राउलमुल्लंघिय किह णु बच्चिहिसि ।।६।। ता विम्हइनो राया तं पुच्छइ भद्द. कत्थ उज्जेणी । अह रोहयो वि बालुय-विरिणम्मियं तस्स दसेइ ॥१०॥ इह ताव हट्टमग्गो इह राउलमेत्थ हत्थि-सालायो । इह पासाया इह मंदुरानो तो तं निएऊरण ॥११॥
तस्स मइ-विहव-रंजिय-हियो हियए विचितए राया। एस मम मंतिमंडल-सिरोमरिणतस्स जोगो त्ति ॥१२॥
परिभाविऊण एवं पुच्छइ तं वच्छ, कत्थ वत्थव्वो? कस्स सुप्रो? साहइ भरहसुनो हं सिलागामे ॥१३॥ तस्स वरबुद्धि-विहवं परिभावेन्तो गयो निवो नरि । सो वि समागयपिउणा समन्निनो नियय-गामम्मि ।।१४।। तब्बुद्धि-पगरिसेगं पमोय-परिपूरिनो पुहइपालो । अवरं खुद्दाएसेणं पेसिउं कुक्कुडं भरणइ ॥१५॥ जह जुज्झावह एवं असहायं रोहएण तो भणियं । दप्पण-पडिबिंबेणं जुज्झावह तंबचुडं ति ॥१६॥ आइसइ पुहइपालो पेसह बलिऊरण वालुयावरहं । जुन्नवरहं समप्पह पडिछंदकए भणइ रोहो ।।१७।।
प्राकृत काव्य-मंजरी
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