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________________ पाठ २८ : बुद्धिमतो रोहओ पाठ-परिचय : __प्राकृत कथा साहित्य में बुद्धि-परीक्षण से सम्बन्धित कई कथाएँ प्राप्त होती हैं । प्रस्तुत पाठ में उज्जयिनी के राजा ने नृत्याकर के पुत्र रोहत की बुद्धि की परीक्षा उसे अपना प्रधानमन्त्री बनाने के लिए ली है। यह कथा प्राकृत के कई ग्रन्थों में आयी है । यहाँ आख्यानमरिणकोश से इसे लिया गया है। इस ग्रन्थ का परिचय पहले दिया जा चुका है। नटपुत्र रोहत ने क्षिप्रा नदी की रेत पर उज्जयिनी नगरी का चित्र बनाया हुआ था। उसे देखकर राजा ने उसकी बुद्धि की कई परीक्षाएं लीं। रोहत ने अपने बुद्धि-कौशल से इन सबका समाधान किया तो उसे प्रधानमन्त्री बना दिया गया । तत्थ नियरूप-निज्जिय-पुरन्दरो दरिय-राय-निद्दलणो। समरंगण-जियसत्तू जियसत्त नाम नरनाहो ॥१॥ अह तीए पुरवरीए पच्चासन्न समत्थि वित्थिन्नो। नामेण सिलागामो गामो धण-धनपरिकलिओ ।।२।। तत्थ अस्थि नडो नाडय-वियक्खणो भरहरनामो मइमं । निय-बुद्धिलद्धसोहो रोहो नामेण तस्स सुप्रो ।।३।। चितेइ तो भरहो बालाणं पेच्छ केरिसुल्लावा । अह अन्नया य भरहो गो सपुत्तो तमुज्जेरिंग ।।४।। काऊरण तत्थ कयविक्कयाइ नियगाममणुपयट्टो सो। जा सिप्प-सरि-समीवे समागो ताव भरहेण ।।५।। भरिणयं रोहय! पुडिया वीसरिया मज्झ हट्टमज्झम्मि । चिट्ठ तुमं जाव अहं गिण्हित्ता पडिनियत्रोमि ।।६।। ११२ प्राकृत काव्य-मंजरो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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