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________________ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् तदैवोत्पद्यन्ते, विनाशमन्तरेणोत्पादस्याऽसम्भवात् । नहि पूर्वपर्यायाऽविनाशे उत्तरपर्यायः प्रादुर्भवितुमर्हति, प्रादुर्भावे वा सर्वस्य सर्वकार्यताप्रसक्तिः, तदकार्यत्वं वा कार्यान्तरस्येव स्यात् । स्थितिरपि सामान्यरूपतया तथैव नियता, स्थितिरहितस्योत्पादस्याभावात्, भावे वा शशशृङ्गादेरप्युत्पत्तिप्रसंगात् ॥४१॥ एतदेव दृष्टान्तद्वारेण समर्थयन्नाह - काय-मण-वयण-किरिया-रूवाइ-गईविसेसओ वावि । संजोयभेयओ जाणणा य दवियस्स उप्पाओ ॥४२॥ ___ यदैवानन्तानन्तप्रदेशिकाहारभावपरिणतपुद्गलोपयोगोपजातरसरुधिरादिपरिणतिवशाविर्भूतशिरोंऽगुल्याद्यङ्गोपाङ्गभावपरिणतस्थूर-सूक्ष्म-सूक्ष्मतरादिभेदभिन्नावयवात्मकस्य कायस्योत्पत्तिस्तदैवानन्तानन्तपरमाणू___व्याख्यार्थ :- एक समय में एक द्रव्य के बहुत सारे उत्पाद होते हैं । जितने उत्पाद होते हैं उतने ही विनाश भी उस द्रव्य के उसी काल में आविर्भूत होते हैं । विनाश के विना उत्पत्ति का कभी संभव ही नहीं होता । पूर्वकालीनपिण्डादिपर्याय का विनाश हुए विना उत्तरकालीन घटद्रव्य का उत्पाद प्रगट ही नहीं हो सकता । (ध्यान में रहे कि यहाँ पूर्वकालीन और उत्तरकालीन यह क्रमश: पिण्ड और घट का विशेषण है न कि विनाशउत्पाद का, क्योंकि वे तो समकालीन ही हैं ।) यदि पूर्वपर्याय-विनाश के विना ही उत्तरपर्याय उत्पन्न हो सकता है तब तो हर किसी द्रव्य में एककाल में सर्वपर्याय की संगति का अतिप्रसंग हो जायेगा, क्योंकि परमाणुव्यणुकादि अथवा तन्तु-मिट्टीपिण्डादि द्रव्यों में पूर्व पूर्व पर्यायों का विनाश हुए विना ही नये नये भावि अनन्त पर्याय उत्पन्न हो कर पूर्वपर्यायसमुदाय में वृद्धि ही करते रहेंगे । अथवा, यह अतिप्रसंग हो सकता है कि घटपर्याय जैसे तन्तु द्रव्य का कार्य नहीं होता वैसे मिट्टी द्रव्य का भी कार्य नहीं होगा, क्योंकि घटोत्पत्तिकाल में जैसे तन्तुअवस्था विनष्ट नहीं होती वैसे ही मिट्टी की पिण्डावस्था भी नष्ट नहीं होगी । विनाश जैसे उत्पाद के साथ काल और संख्या से नियत है वैसे ही समानतया, उत्पाद के साथ उतनी स्थितियाँ भी उसी काल में नियत है ऐसा स्वीकारना चाहिये, क्योंकि विना स्थिति के जैसे शशसींग की उत्पत्ति नहीं होती वैसे उत्पाद भी सम्भव नहीं होगा । यदि विना स्थिति उत्पाद हो सकता है तो शशसींग की उत्पत्ति का भी अतिप्रसंग हो सकता है ॥४१॥ * शरीर के दृष्टान्त से अनन्तपर्यायों के उत्पाद का निरूपण * एक काल में भी एक द्रव्य में अनन्तपर्याय कैसे होते हैं, इस तथ्य का दृष्टान्त के द्वारा समर्थन के लिये कहते हैं - मूलगाथार्थ :- द्रव्य के उत्पाद के साथ शरीर-मन-वचन-क्रिया-रूपादि-गतिविशेष तथा संयोग-विभाग और ज्ञानपर्याय का भी उत्पाद होता है ॥४२।। ___व्याख्यार्थ :- जिस समय एक काया द्रव्य उत्पन्न होता है उसी समय उसके साथ अनन्त उत्पाद मिलेजुले रहते हैं, वह इस प्रकार - अनन्तानन्त परमाणुप्रदेशों की आहाररूप में परिणति यानी उत्पत्ति होती है और तब उसके उपयोग के साथ रस-रुधिरादि धातुओं की उत्पत्ति होती है, उसके साथ ही रसादिपरिणाम के माध्यम से शिर, अंगुली आदि अंग-उपांग भावों के परिणमन से स्थूल-सूक्ष्म-सूक्ष्मतरादि विविध अवयवों की उत्पत्ति होते समय समूचे अवयवसमुदायात्मक कायारूप एक अवयवी की उत्पत्ति होती है । काया की उत्पत्ति के साथ साथ उस के अंतरंगरूप में जो मन की उत्पत्ति होती है उस में भी मनोवर्गणा के अनन्तानन्त परमाणुओं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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