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________________ पञ्चमः खण्डः का० ४१ ― द्व्यणुकादीनां सति संयोगे यद्येकस्य त्र्यणुकादेः कार्यद्रव्यस्योत्पादो भवति – अन्यथैकाभिधानप्रत्ययव्यवहाराऽयोगात्; नहि बहुषु 'एको घट उत्पन्न : ' इत्यादिव्यवहारो युक्तः - 'ननु' इत्यक्षमायाम् एकस्य कार्यद्रव्यस्य विनाशेऽपि युज्यते एव बहूनां समानजातीयानां तत्कार्यद्रव्यविनाशात्मकानां प्रभूततया विभक्तात्मनामुत्पाद इति । तथाहि - घटविनाशाद् बहूनि कपालान्युत्पन्नानीत्यनेकाभिधानप्रत्ययव्यवहारो युक्तः, अन्यथा तदसम्भवात् । ततः प्रत्येकं त्र्यात्मकास्त्रिकालाश्चोत्पादादयो व्यवस्थिता इत्यनन्तपर्यायात्मकमेकं द्रव्यम् ॥४०॥ —— ६९ नन्वनन्ते काले भवत्वनन्तपर्यायात्मकमेकं द्रव्यम्, एकसमये तु कथं तद् तदात्मकमवसीयते ? प्रदर्शितदिशा तदात्मकं तदवसीयते इत्याह एगसमयम्मि एगदवियस्स बहुया वि होंति उप्पाया । उप्पायसमा विगमा ठिईउ उस्सग्गओ णियमा ॥ ४१ ॥ एकस्मिन् समये एकद्रव्यस्य बहव उत्पादा भवन्ति । उत्पादसमानसंख्या विगमा अपि तस्यैव * एकद्रव्यनाश से अनेक का उत्पाद मूलगाथार्थ :- यदि बहु द्रव्यों के संयोग से ऐसा उत्पाद हो सकता है जो 'एक' शब्द का विषय बनता है तो निश्चय ही एक के विभाग से बहु द्रव्यों का उत्पाद भी घट सकता है ||४०|| व्याख्यार्थ :- द्व्यणुकादि अनेक द्रव्यों के संयोग से व्यणुकादि एक कार्य द्रव्य का उत्पाद हो सकता है यह सर्वसम्मत तथ्य है । यदि ऐसा न होता तो 'एक' ऐसी संज्ञा, 'एक' ऐसी प्रतीति तथा 'एक' ऐसा व्यवहार भी नहीं घटता । अनेक द्रव्यों का निर्देश करने के लिये एक घट उत्पन्न हुआ' ऐसा शब्दव्यवहार करना उचित नहीं गिना जाता । अगर उक्त रीति से एक द्रव्य का उत्पाद संभव है - तो मूल ग्रन्थकार यहाँ अक्षम्यतासूचक ‘ननु’ शब्द का प्रयोग करते हुए कहते हैं - एक कार्यद्रव्य का विनाश होने पर समानजातिवाले एवं पूर्वद्रव्यविनाशात्मक, अनेक होने से परस्परविभक्त बहु द्रव्यों का उत्पाद भी हो सकता है । जैसे देखिये - घट का भंग हुआ तब कहते हैं कि अनेक कपाल उत्पन्न हुए । वैसी प्रतीति भी होती है और वैसा ही लोकव्यवहार भी होता है । यहाँ कोई अयुक्तता नहीं है, यदि कोई अयुक्तता होती तो वैसा कथन, वैसी प्रतीति, वैसा लोकव्यवहार कुछ भी नहीं होता । — समग्र चर्चा का निष्कर्ष यह है कि उत्पाद-व्यय और स्थैर्य ये एक एक त्रयात्मक यानी उत्पाद-व्ययस्थैर्यात्मक है, तथा तीनों ही त्रैकालिक भी हैं । वास्ते एक एक द्रव्य अनन्तपर्यायात्मक होने का सिद्ध होता है ||४०|| * एककाल में एकद्रव्य के अनन्त पर्याय कैसे ? * शंका :- अनन्तकाल के पर्यायों की गिनती करने पर एक द्रव्य अनन्तपर्यायात्मक हो सकता है, किन्तु एक ही समय में एक द्रव्य अनन्तपर्यायात्मक कैसे जान सकते हैं ? समाधान :- पहले ३५ - ३६-३७ गाथा में दिखाया है उस दिशा में ध्यान से सोचेंगे तो एक ही द्रव्य एक समय में अनन्त पर्यायात्मक हो सकता है यह भली भाँति जान सकते हैं । ४१वीं गाथा से भी यही तथ्य दिखाते हैं मूलगाथार्थ :- यह औत्सर्गिक नियम है कि एक समय में एक द्रव्य के बहुत सारे उत्पाद होते हैं, जितने उत्पाद होते हैं उतने ही विनाश और स्थितियाँ भी होती है ॥४१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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