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________________ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् तिण्णि वि उप्पायाई अभिण्णकाला य भिण्णकाला य । अत्यंतरं अणत्थंतरं च दवियाहि णायव्वा ॥३५॥ त्रयोप्युत्पाद-विगम-स्थितिस्वभावाः परस्परतोऽन्यकालाः, यतो न पटादेरुत्पादसमय एव विनाशः तस्यानुत्पत्तिप्रसक्तेः । नाऽपि तद्विनाशसमये तस्यैवोत्पत्तिः, अविनाशापत्तेः । न च तत्प्रादुर्भावसमय एव तत्स्थितिः, तद्रूपेणैवावस्थितस्यानवस्थाप्रसक्तितः प्रादुर्भावाऽयोगात् । न च घटरूपमृस्थितिकाले तस्याः विनाशः, तद्रूपेणावस्थितस्य विनाशानुपपत्तेः । न च घटविनाशविशिष्टमृत्काले तस्या एवोत्पादो दृष्टः । नापि तदुत्पादविशिष्टमृत्समये तस्या एव ध्वंसोऽनुत्पत्तिप्रसंगत एव युक्तः । ततस्त्रयाणामपि भिन्नकालत्वात् तद् द्रव्यमर्थान्तरं = नानास्वभावम्, न ह्यन्योन्यव्यतिरिक्तकालोत्पाद-विगमध्रौव्याऽव्यतिरिक्तमेकस्वरूपं द्रव्यमुपपद्यते तस्य तेभ्यो भेदप्रसक्तेः । * उत्पाद-विनाश-स्थितियों का काल से भेदाभेद * __ अर्थान्तरगमनस्वरूप विनाश के विवरण में यह जो कहा है कि मिट्टी के पिण्ड का विनाश और घटोत्पाद अभिन्न है, उस से ऐसा नहीं समझ लेना कि – 'उत्पाद और विनाश में एकान्ततः अभेदरूपता ही होती है इसलिये अनेकान्तवाद में व्याघात आयेगा ।' – व्याघात को अवकाश इसलिये नहीं है कि उत्पाद-विनाश को हम कथंचिद् एकरूप मानते हैं, सर्वथा एकरूप नहीं । यह तथ्य निम्नोक्त गाथाविवरण से स्पष्ट हो जायेगा - मूलगाथार्थ :- उत्पाद-विनाश और स्थिति ये तीनों ही अभिन्नकालीन और भिन्नकालीन होते हैं, तथा द्रव्य से अर्थान्तर और अनर्थान्तर होते हैं ॥३५॥ व्याख्यार्थ :- उत्पादस्वभाव, विनाशस्वभाव और स्थितिस्वभाव ये तीनों स्वभाव अन्योन्य भिन्नकालीन होते हैं । (व्याख्या में पहले भिन्नकालीन की और बाद में अभिन्नकालीन की चर्चा है जब कि मूलगाथा में पहले अभिन्नकालीन और बाद में भिन्नकालीन की बात है ।) यहाँ पहले Aघट-पटादि अवस्थाओं (पर्यायों) के उत्पादादि में भेद बताया जायेगा, फिर Bघटपर्याय से विशिष्ट मिट्टी की उत्पत्ति आदि में भिन्नकालता दिखायी जायेगी। पश्चात् उसके भिन्न भिन्न प्रतियोगिक उत्पादादि में अभिन्नकालीनता दीखायी जायेगी । Aपहले कहते हैं कि वस्त्र या घटादि के उत्पत्तिकाल में उसी घट या वस्त्र का विनाश असम्भव है, क्योंकि विनाशसामग्री उत्पत्तिविरोधी होने से उस समय में घट की उत्पत्ति को ही रोक देगी । तथा घट के विनाशकाल में घट की उत्पत्ति का सम्भव नहीं है, क्योंकि उत्पादक सामग्री संनिहित रहेगी तो विनाश को ही रोक देगी । घट की उत्पत्ति के काल में घट की अवस्थिति भी नहीं मान सकते, क्योंकि यदि उस काल में घटरूप से घट की अवस्थिति के होने पर भी उत्पत्ति को लब्धावसर मानेंगे तो उसके उत्तरक्षण में... उस के उत्तरक्षण में... इस प्रकार यावदवस्थितिकाल में उत्पत्ति की ही परम्परारूप अनवस्था प्रसक्त होगी, फलतः अनवस्था दोष के कारण उत्पत्ति अप्रामाणिक बन जाने से घट कभी उत्पन्न ही नहीं हो पायेगा । इस प्रकार घट के उत्पादादि भिन्नकालीन - स्या० क. प्रथमस्तबके अस्या भावार्थ एवं निरूपितः - 'अत्रैकप्रतियोगिनिरूपितत्वेन तद्विशिष्टद्रव्यनिरूपितत्वेन वोत्पाद-स्थितिविगमानां भिन्नकालता, यथा घटोत्पादसमये घटविशिष्टमृदुत्पादसमये वा न तद्विनाशः अनुत्पत्तिप्रसक्तेः । नापि तद्विनाशसमये तदुत्पत्तिः, अविनाशप्रसक्त्तेः । न च तत्प्रादुर्भावसमय एव तत्स्थितिः, तद्रूपेणावस्थितस्यानवस्था प्रसक्त्या प्रादुर्भावाऽयोगात् । अतो द्रव्यादर्थान्तरभूतास्ते, अनेकरूपाणामेकद्रव्यरूपत्वायोगात् । भिन्नप्रतियोगिनिरूपितत्वेन तद्विशिष्टद्रव्य निरूपितत्वेन वाऽभिन्नकालता, यथा कुशूलतद्विशिष्टमृन्नाश-घटतद्विशिष्टमृदुत्पाद-मृत्स्थितीनाम् । अत ऐकरूप्येण द्रव्यादनान्तरभूतत्वमिति सम्प्रदायः । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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