________________
पञ्चमः खण्डः का० ३५
न च तद् भिन्नमेवास्तु तत्त्रितयविकलस्य तस्य तथाऽनुपलब्धितोऽसत्त्वात् । न चैकस्य द्रव्यस्याभावादनेकान्ताभावप्रसक्तिः, यतोऽभिन्नकालाश्चोत्पादादयः । न हि कुशूलविनाशघटोत्पादयोर्भिन्नकालता अन्यथा विनाशात् कार्योत्पत्तिः स्यात्, घटाद्युत्तरपर्यायानुत्पत्तावपि प्राक्तनपर्यायध्वंसप्रसक्तिश्च स्यात् ।
पूर्वोत्तरपर्यायविनाशोत्पादक्रियाया निराधाराया अयोगात् तदाधारभूतद्रव्यस्थितिरपि तदाऽभ्युपगन्तव्या । न च क्रियाफलमेव क्रियाधारः तस्य प्रागसत्त्वात् सत्त्वे वा क्रियावैफल्यात्ततस्त्रयाणामभिन्नकालत्वात् तदव्यतिरिक्तं द्रव्यमभिन्नं न नाना । न च घटोत्पाद - विनाशापेक्षया भिन्नकालतयाऽर्थान्तरत्वम् कुशूलघटविनाशोत्पादापेक्षया अभिन्नकालत्वेनानर्थान्तरत्वादेकान्त इति वक्तव्यम्, द्रव्यस्य पूर्वावस्थायां भिन्नाऽभिन्नतया प्रतीयमानस्योत्तरावस्थायामपि भिन्नाभिन्नतया तस्यैव प्रतीतेरनेकान्ताऽव्याहतेः । न चाऽबाधिताऽध्यक्षादिप्रतिपत्तिविषयस्य तस्य विरोधाद्युद्भावनं युक्तिसंगतम् सर्वप्रमाणप्रमेयव्यवहारविलोपप्रसंगात् ।
इस प्रकार घट
सिद्ध हुए । अब घटविशिष्ट मिट्टी की बात करते हैं घटात्मकमिट्टी का जब स्थितिकाल प्रवर्त्तमान है तब उस काल में उस का विनाश संगत नहीं है, क्योंकि घटरूप से मिट्टी की स्थिति यह घटरूप से मिट्टी के विनाश की विरोधिनी है । तथा, घटविनाशविशिष्ट जो मिट्टी काल है जो कि कथंचिद् मिट्टी का भी विनाशकाल ही है, उस काल में घट के रूप में उसकी उत्पत्ति का कहीं भी दर्शन ही सम्भव नहीं है । तथा, घटोत्पत्तिविशिष्ट मिट्टीकाल में उसका विनाश भी संभव नहीं है, क्योंकि तब उसकी उत्पत्ति अशक्य बन जायेगी । उत्त्पाद-विनाश-स्थिति अथवा घटविशिष्टमिट्टीद्रव्य के उत्पाद - विनाश- स्थिति ये भिन्नकालीन होने से वह घटद्रव्य या घटपर्यायविशिष्ट मिट्टी द्रव्य अर्थान्तरभूत यानी विविधस्वभावों का अनुभव करता है, अर्थात् उत्पत्तिकालीनद्रव्य स्थिति - विनाशकालीन द्रव्यों से कथंचिद् भिन्न है; स्थितिकालीनद्रव्य उत्पत्ति - विनाशकालीन द्रव्य से कथंचिद् भिन्न है; तथा विनाशकालीन द्रव्य अपरद्वयकालीन द्रव्य से कथंचिद् भिन्न है । कारण, परस्पर भिन्नकालीन उत्पत्ति, स्थिति और विनाश, एकस्वरूप द्रव्य से अव्यतिरिक्त नहीं रह सकता । तात्पर्य, भिन्नकालीन उत्पादादि, अपने से अभिन्न द्रव्य का, भिन्नकालीन स्थितिआदि से अभिन्न द्रव्य से, भेदक बन जाते हैं । अन्यथा, उस द्रव्य का उत्पादादि से भेद प्रसक्त हो सकता है ।
५१
—
Jain Educationa International
यदि कहें कि 'द्रव्य और उत्पादादि के बीच में भेद ही माना जाय तो वह ठीक नहीं है क्योंकि उत्पादादि और द्रव्य के बीच अगर भेद माना जायेगा तो द्रव्य स्वतः उत्पादादिशून्य हो जाने से उपलब्धियोग्य भी न रहने से असत् हो जाने की विपदा होगी । उत्पत्तिविशिष्ट द्रव्य, स्थितिविशिष्ट द्रव्य और विनाशविशिष्ट द्रव्य में उत्पत्तिआदिभेदप्रयुक्त भेद मानने का ऐसा मतलब नहीं है कि एकान्त भेद प्रसक्त होने से अनेकान्त का विलोप हो जाय, क्योंकि कथंचिद् भिन्नकालीन उत्पादादि कथंचिद् अभिन्नकालीन भी होते हैं । कुशूल यह मिट्टी की घटपूर्वकालीन अवस्थाविशेष है, उसका जिस समय नाश होता है उसी वक्त उत्तरावस्थारूप घट की उत्पत्ति होती है । अतः कुशूलविनाश और घटोत्पत्ति ये दोनों में भिन्नकालता नहीं होती । यदि कुशूलविनाश के उत्तरक्षण में घटरूपकार्य की उत्पत्ति मानेंगे तो तुच्छ विनाश से भावात्मक घट की उत्पत्ति मानने की विपदा आयेगी, यदि विनाश को घट का उत्पादक नहीं मानेंगे तो यह संभावना भी रह जायेगी कि कदाचित् उत्तरक्षण में घटावस्था की उत्पत्ति न होने पर भी कूशूलपर्याय का नाश हो जाय, क्योंकि न तो विनाश उस का उत्पादक है न तो विनाश की पूर्वावस्था यानी कुशूल । यदि कुशूल के चरमक्षण से घट का उत्पाद मानना है तब तो कुशूल के नाशक्षण में ही घट का उत्पाद मानना होगा ।
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org