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________________ श्री सम्मति - तर्कप्रकरणम् 'अयं तावद्गुण' इति रूपाद्यभिधायिगुणशब्दव्यतिरेकेणापि 'एकगुणकाल:' इत्यादिकं पर्यायविशेषसंख्यावाचकं वचः सिध्यति न पुनर्गुणास्तिकनयप्रतिपादकत्वेन, यतः संख्यानं गणितशास्त्रधर्मः ' एतावताऽधिको न्यूनो वा भाव:' इति गणितशास्त्रधर्मत्वादस्येत्यर्थः ॥ १४॥ दृष्टान्तद्वारेणामुमेवार्थं दृढीकर्तुमाह - जह दससु दसगुणम्मि य एगम्मि दसत्तणं समं चैव । अहियम्मि वि गुणसद्दे तहेय एवं पि दट्ठव्वं ॥ १५ ॥ यथा दशसु द्रव्येषु एकस्मिन् वा द्रव्ये दशगुणिते र्देशशब्दातिरेकेऽपि दशत्वं सममेव तथैव एतदपि न भिद्यते 'परमाणुरेकगुणकृष्णादिः' इति एकादिशब्दाधिक्ये । गुण- पर्यायशब्दयोर्भेदः, वस्तु पुनस्तयोस्तुल्यमिति भावः । न च गुणानां पर्यायत्वे वाचकमुख्यसूत्रम् 'गुणपर्यायवद् द्रव्यम्' [तत्त्वार्था० २२ — व्याख्यार्थ :- सिद्धान्तवादी का उत्तर यह है कि भगवती सूत्र आदि में 'एकगुणकालए' इत्यादिसूत्र में रूपादि के लिए 'गुण' शब्दप्रयोग मानने की जरूर ही नहीं है, क्योंकि द्रव्य के पर्यायविशेष स्वरूप संख्या को कृष्णादिरूप की कृष्णता अन्य कृष्णद्रव्य की अपेक्षा दसगुणी या अनन्तगुणी अधिक या न्यून है इस प्रकार के संख्याविशेष को, बताने के लिये वह वचनप्रयोग है यह सिद्ध यानी सर्वजनसम्मत तथ्य है । अतः उस वचन को अर्थापत्ति से गुणार्थिकनय प्रतिपादक मानना निरर्थक है । मूलगाथा में प्रयुक्त 'संखाण' शब्द का अर्थ है गणितशास्त्र । तात्पर्य यह है कि 'यह इतनागुणा है' इस प्रकार जो तावद्गुणत्वस्वरूप गणितशास्त्रप्रसिद्ध धर्म है उस का निर्देश 'एकगुणकालए....' इत्यादि सूत्र में किया गया है, न कि रूपादि का गुणरूप में, इसलिये रूपादि गुण के लिये गुणार्थिक नय की मान्यता निराधार सिद्ध होती है || १४ || * 'गुण' शब्द पर्यायभिन्नअर्थ प्रतिपादक नहीं - 'गुण' शब्द किसी अतिरिक्त अर्थ का प्रतिपादक नहीं है, इस तथ्य के दृढीकरण के लिये दृष्टान्त दिखाते हैंमूलगाथाशब्दार्थ :- दश और दशगुणित एक, दोनों में दशत्व समान है, यद्यपि गुण शब्द अधिक है, इसी तरह यह भी समझ लीजिए || १५ ॥ व्याख्यार्थ :- समीकरण सिद्धान्त के अनुसार गणित में १० = १० x १ बराबर होता है, इस में 'दशगुणित एक' ऐसे व्यवहार में गुण शब्द का दश उपरांत अधिक प्रयोग करने से संख्या में कुछ फर्क नहीं पडता, क्योंकि दोनों ओर दशत्व संख्या समान है । इसी तरह 'एकगुणकाला परमाणु' यहाँ भी एकशब्द उपरांत गुणशब्द का प्रयोग करने से भी किसी नये अर्थ का प्रतिपादन नहीं होता एक अंश काला और एकगुणित एक अंशकाला — - ऐसा कहने पर कुछ अधिक - न्यून नहीं होता । मतलब यह है कि 'गुण' शब्द और 'पर्याय' शब्द में शब्दभेद ही है, दोनों का अभिधेय वस्तु यानी अर्थ तो समान ही है । यदि यह कहा जाय गुण और पर्याय को एक मानने वाले पक्ष में, वाचकवर्य श्रीमद् उमास्वातिजी विरचित तत्त्वार्थाधिगमसूत्र में द्रव्य का लक्षण करते हुए कहा गया है 'गुण और पर्याय वाला हो वह द्रव्य है' इस के साथ विरोध आयेगा । कारण, पर्याय के पहले यहीं गुणशब्द का प्रयोग सूचित करता है कि उन दोनों में भेद है । तो यह गैरमुनासिब है क्योंकि वहाँ युगपद्भावि यानी द्रव्य के सहभावि पर्यायों 'गुणशब्दातिरेकेऽपि' इति वाचकोक्तमनेकान्तव्यवस्थायाम् । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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