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________________ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् दुष्टत्वाऽऽपत्तेः। न च प्रदर्शितवाक्यात्मकः सर्वज्ञप्रणीतागमत्वेनास्मान् प्रत्यसिद्ध इति वक्तव्यम्, नास्तिकमीमांसकान् प्रति पुरुषनिर्वाणावेदकस्यापि तत्प्रणीतत्वेन असिद्धेः । या च तान् प्रति तस्य तत्प्रणीतत्वावेदिका युक्तिः सेतरत्रापि समाना पूर्वापरैकवाक्यत्व - दृष्टाऽदृष्टाबाधितार्थत्वादेरविशेषात् । अथ स्त्रीणां घातिकर्मक्षयनिमित्ताद्यशुक्लध्यानद्वयस्याऽसम्भवाद् न निर्वाणप्राप्तिः संभविनी । ननु कुतस्तद्द्द्वयस्य तत्राभावगतिः ? ' पूर्वधरस्यैव तयोः सद्भावात् ' आये पूर्वविदः " ( तत्त्वार्थ० ९-३९) इति वचनप्रामाण्यात्, न च पूर्वधरत्वं तासाम् तदनधिकारित्वादिति चेत् ? तर्हि प्राक्तनभवानधीतपूर्वाणां वर्त्तमानतीर्थाधिपत्यादीनामपि न तद् भवेत्, तदध्ययनाऽसम्भवात् आद्यशुक्लध्यानद्वयाऽसम्भवतः तन्निमित्तघातिकर्मक्षयसमुद्भूताशेषतत्त्वावबोधस्वभावकेवलज्ञानाभावे न मुक्तिश्रीसंगतिः स्यादित्यनिष्टापत्तिः। अतः शास्त्रयोगागम्यसामर्थ्ययोगावसेयभावेष्वतिसूक्ष्मेष्वपि तेषां विशिष्टक्षयोपशमवीर्यविशेषप्रभवप्रभावयोगात् पूर्वधरस्येव बोधातिरेकसद्भावाद् आद्यशुक्लध्यानद्वयप्राप्तेः कैवल्यावाप्तिक्रमेण मुक्त्यके एक अंश में दाग लगने पर पूरा वस्त्रं मलिन कहा जाता है और धोया जाता है। -- यदि ऐसा कहा जाय सिद्धप्राभृत आदि के स्त्री- निर्वाण साधक प्रदर्शित सूत्रों को हम सर्वज्ञभाषित मानते ही नहीं – तो बडी आपत्ति होगी, क्योंकि नास्तिक लोग एवं मीमांसक आदि पंडितवर्ग पुरुषमुक्तिसूचक सूत्रों को भी सर्वज्ञभाषित अथवा प्रमाणभूत नहीं मानते, तो क्या आप भी उन सूत्रों को अप्रमाण मानेंगे ? 'हम उन के सामने ठोस युक्तियाँ पेश कर के दिखायेंगे कि पुरुषनिर्वाणसूचक शास्त्र प्रमाणभूत है तो उन्हीं युक्तियों का सदुपयोग करके यह भी दिखाया जा सकता है कि स्त्रीनिर्वाणसूचक सूत्र भी प्रमाण है, क्योंकि पुरुषनिर्वाणसाधक एवं स्त्रीनिर्वाणसाधक सूत्रों में पूर्वापर एकवाक्यता अबाधित है और उन दोनों ही सूत्रों की एकवाक्यता धारण करनेवाला आगम दृष्ट अर्थों के बारे में बाधमुक्त हैं, अतः दोनों सूत्र के प्रामाण्य में कोई भेद नहीं हो सकता । ३८२ - * पूर्वो का ज्ञान न होने पर भी तीर्थंकर को शुक्लध्यान शुक्लध्यान का प्रथम और दूसरा भेद घाती कर्मों के क्षय का मुख्य कारण है, स्त्रीयों में दिगम्बर : ये दो भेद सम्भव नहीं है इसलिये उन को मोक्षप्राप्ति का सम्भव नहीं है । प्रश्न :- कैसे पता चला कि स्त्रीयों में वे दो भेद असम्भव हैं ? उत्तर :- पूर्वधरों को ही वे होते हैं, तत्त्वार्थसूत्र का वचन प्रमाण है कि 'आद्ये पूर्वविदः' यानी पहले दो भेद सिर्फ पूर्वश्रुतधारीयों को ही सम्भव है । स्त्रीयों को पूर्वश्रुत के अभ्यास का अधिकार ही नहीं है यह तो आप भी मानते हैं। पूर्वश्रुत के अभाव में शुक्लध्यान के दो भेदों का भी अभाव अर्थात् सिद्ध हो जाता है । यथार्थवादी :- जिन्होंने पूर्वभव में कभी पूर्वश्रुत का अध्ययन नहीं किया ऐसे चरमतीर्थपति श्री महावीर प्रभु आदि को भी शुक्लध्यान के दो भेदों का अयोग फलित हो जायेगा क्योंकि उन्होंने भी इस भव में पूर्वश्रुत का अध्ययन नहीं किया । फलतः उन्हें शुक्लध्यान के प्रथम दो भेदों का सम्भव न होने से तन्मूलक घाती कर्मो का क्षय भी नहीं होगा। नतीजतन, सकलतत्त्वाबोधस्वरूप केवलज्ञान न होने से उन को भी मोक्षलक्ष्मी की प्राप्ति नहीं होनी चाहिये यह बडा अनिष्ट प्रसंग उपस्थित होगा । दिगम्बर :- चरम तीर्थपति आदि को पूर्वश्रुत का अभ्यास नहीं था यह सही है । किन्तु उन को सूक्ष्म भावों के बारे में पूर्वश्रुतधर जैसा ही अतिशायी बोध जरूर था। शास्त्रयोग से अगम्य किन्तु सामर्थ्ययोग से ही गम्य ऐसे सूक्ष्मभावों को अवगत करने के लिये उन के पास विशिष्ट कोटि का क्षयोपशम था, एवं ऐसा अद्भुत वीर्य (सामर्थ्य) था जिस के प्रभाव से सूक्ष्म भावों को जान सके। इस प्रकार पूर्वश्रुतधर की तरह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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