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पञ्चमः खण्डः - का० ६५
३८३ वाप्तिरिति न दोषः, तदध्ययनमन्तरेणापि विशिष्टक्षयोपशमसमुद्भूतज्ञानात् पूर्ववित्त्वसम्भवात् । - तर्हि निर्ग्रन्थीनामपि एवं द्वितयसम्भवे न कश्चिद् दोषमुत्पश्यामः । अभ्युपगमनीयं चैतत्, अन्यथा मरुदेवस्वामिनीप्रभृतीनां जन्मान्तरेऽपि अनधीतपूर्वाणां न मुक्तिप्राप्तिर्भवेत् । न चासौ तेषामसिद्धा, सिद्धप्राभृतादिग्रन्थेषु गृहिलिंगसिद्धानां प्रतिपादनात् । न च तेऽप्रमाणम् सर्वज्ञप्रणीतत्वेन तेषां प्रामाण्यस्य साधितत्वात् । ___ अथ मायागारवादिभूयस्त्वादबलानां न मुक्तिप्राप्तिः। न, तदा तासां तद्भूयस्त्वाऽसम्भवात्, प्राक् तु पुरुषाणामपि तत्सम्भवोऽविरुद्धः । अथाल्पसत्त्वाः क्रूराध्यवसायाश्च ता इति न मुक्तिभाजः। न, सत्त्वस्य कार्यगम्यत्वात् तस्य च तासु दर्शनात् अल्पसत्त्वत्वाऽसिद्धिः। दृश्यन्ते ह्यसदभियोगादौ तृणवत् ताः प्राणपरित्यागं कुर्वाणाः परीषहोपसर्गाभिभवं चाऽङ्गीकृतमहाव्रताः विदधानाः। क्रूराध्यवसायत्वं दृढप्रहारिप्रभृतीनां प्रागवस्थायां तद्भवे विद्यमानमपि न मुक्तिप्राप्तिप्रतिबन्धकम् तदवस्थायां तु तस्य तास्वपि अभाव एव । अथ लोकवद् लोकोत्तरेऽपि धर्मे पुरुषस्योत्तमत्वात् मुक्तिप्राप्तिः, न स्त्रीणाम् सातिशयबोधवाले होने से उन को शुक्लध्यान के प्रथम दो भेद की प्राप्ति सरलता से हो सकती है, घाती कर्मों का क्षय और केवलज्ञान एवं मुक्ति भी प्राप्त होने में कोई बाध नहीं है। तात्पर्य, पूर्वश्रुत के अध्ययन के विना भी उन को ऐसा विशिष्ट क्षयोपशम हो जाता है कि वे स्वतः (भावतः) पूर्ववेत्ता होते हैं।
यथार्थवादी :- हाँ जी ! ऐसे ही पूर्वश्रुत अध्ययन के विना भी साध्वीयों को विशिष्ट क्षयोपशम के प्रभाव से पूर्वो का ज्ञान, शुक्लध्यान के दो भेद, घाती कर्मों का क्षय केवलज्ञान और मोक्षप्राप्ति होने में कोई संकट खड़ा नहीं रहता।
दिगम्बरों को इस तथ्य का अनिच्छा से भी स्वीकार कर लेना चाहिये, अन्यथा पूर्व जन्मों में पूर्वश्रुत का अभ्यास न करनेवाले भी ऋषभदेवमाता मरुदेवास्वामिनी आदि पुण्यात्माओं को मोक्षप्राप्ति कभी नहीं होती। 'उन्हें मोक्ष प्राप्त ही नहीं हुआ' ऐसी बात भी नहीं है, क्योंकि सिद्धप्रामृत आदि अनेक आगमों में गृहस्थलिंग में भी सिद्ध होने वाले अनेक पुण्यात्माओं का निर्देश किया है। सिद्धप्राभृत आदि शास्त्रोकों अप्रमाण नहीं करार देना, सर्वज्ञभाषित होने के आधार पर उन के प्रामाण्य को सिद्ध किया जा चुका है।
दिगम्बर :- स्त्रीयों में मायागारव आदि प्रबल दोष होते हैं इसलिये उन को मोक्षलाभ नहीं होता।
यथार्थवादी :- यह विधान गलत है, साधक दशा में स्त्रीयों में मायागारवादि प्रबल दोषों का सम्भव नहीं होता। पूर्वावस्था में तो स्त्रीयों की तरह पुरुषों में भी प्रबल दोष होने में क्या विरोध है ? ऐसा कहना कि - ‘महिला में सत्त्व कम होता है और उन की प्रकृति क्रूर होती है इसलिये उन की मुक्ति नहीं होती' – यह भी ठीक नहीं है। सत्त्व कम है या अधिक यह तो एक मात्र उन के कार्यों से ही हम जान सकते हैं और विशिष्ट पराक्रम आदि कार्य महिलाओं में भी देखा जाता है इसलिये उन में कम होने की बात असिद्ध है। क्या नहीं देखा है कि कभी पवित्र महिला के ऊपर गलत आक्षेप किया जाय तो वे घासफूस की तरह प्राणों की कुरबानी कर देती है और बहुत साध्वीयाँ महाव्रती बन कर परिषह-उपसर्गों की फौज को परास्त करती है। क्रूर प्रकृति की बात भी विचारशून्य है। दृढप्रहारी आदि में पूर्वावस्था में अत्यन्त क्रूरता थी लेकिन प्रतिबोध पा जाने पर साधनाकाल में वह नहीं थी और उसे मोक्षलाभ हुआ। ऐसे ही पूर्वावस्था में महिलाओं में क्रूरता के रहने पर भी वह मुक्ति में प्रतिबन्धक नहीं होती क्योंकि साध्वी अवस्था में उस क्रूरता का अभाव हो सकता है।
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