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________________ पञ्चमः खण्डः का० ६५ ( वा० प० १-३८) संस्पर्शित्वात् । उक्तं च भर्तृहरिणा 'अतीन्द्रियानसंवेद्यान् पश्यन्त्यार्षेण चक्षुषा । ये भावान् वचनं तेषां नानुमानेन बाध्यते । । ' न चात्र वस्तुनि आगमनिरपेक्षमनुमानं प्रवर्त्तितुमुत्सहते, पक्षधर्मादेर्लिंगरूपस्य प्रमाणान्तरतः प्रतिपत्तुमशक्तेः, प्रतिपत्तौ वा साध्यस्यापि प्रतिबन्धग्राहिणा प्रमाणेन प्रतिपत्तेर्नैकान्ततोऽतीन्द्रियता भवेत् । आगमानुसारि चानुमानं प्रकृते वस्तुनि संवादकृदेव न बाधकमिति प्रदर्शितम् । न चाप्तवचनं स्त्रीनिर्वाणप्रतिपादकमप्रमाणम्, सप्तमनरकप्राप्तिप्रतिषेधकं प्रमाणमिति वक्तव्यम्, उभयत्राप्तप्रणीतत्वादेः प्रामाण्यनिबन्धनस्याऽविशेषात्। न चैकमाप्तप्रणीतमेव न भवति, इतरत्रापि अस्य समानत्वात्, पूर्वाप - रोपनिबद्धाशेषदृष्टादृष्टप्रयोजनार्थप्रतिपादकाऽवान्तरवाक्यसमूहात्मकैकमहावाक्यरूपतयाऽर्हदागमस्यैकत्वात् । तथा चान्तरवाक्यानां केषाञ्चिदप्रामाण्ये सर्वस्याप्यागमस्याऽप्रामाण्यप्रसक्तेः अङ्गदुष्टत्वे तदात्मकाङ्गिनोऽपि या अप्राप्त को ? प्राप्त को मारेगा तो पहले उस फिलहान को ही मार देगा जो उस की पीठ पर सवार है । यदि अप्राप्त को मारेगा तो सारे जनपद के अप्राप्त लोगों को भी मारेगा, फिर मुझे अकेले को ही क्यों मारने का डर दिखाया जाता है ? ऐसे कुतर्कगर्भित विकल्प करनेवाले पंडितजी को क्या कहा जाय ? चार आदमीयों ने उस को गले से पकड़ कर मुश्किल से बाजू पर किया न होता तो विकल्प करते करते ही वहाँ निर्विकल्प हो जाते सदा के लिये । भर्तृहरिने अपने वाक्यपदीय में कहा है 'अन्य प्रमाण से असंवेद्य इन्द्रियगोचर पदार्थों को ऋषिसाक्षात्कारस्वरूप नेत्र से जो लोग देख रहे हैं, उन का वचन कभी भी अनुमान से स्खलित नहीं हो सकता । ' * अतीन्द्रिय वस्तु में आगमनिरपेक्ष अनुमान गतिहीन अध्यवसाय जैसी अतीन्द्रिय वस्तु के विषय में स्वतन्त्र आगमनिरपेक्ष अनुमान की गुंजाईश ही नहीं है कि वह प्रवृत्ति कर सके । स्त्रीस्वरूप पक्ष में तथाविध अशुभ अध्यवसाय के अभाव को हेतु करने पर भी उस हेतु में पक्षधर्मतादि रूपों का निश्चय आगमभिन्न प्रमाण से शक्य ही नहीं है। यदि वैसा निश्चय अतीन्द्रिय पदार्थ के बारे में शक्य हो तब अतीन्द्रिय साध्य का निश्चय भी आगमभिन्न व्याप्तिग्राहक प्रमाण से शक्य हो जायेगा, फलतः वैसे साध्य को एकान्ततः 'अतीन्द्रिय' नहीं कहा जा सकेगा। फलतः यहाँ आगमसापेक्ष अनुमान ही प्रवृत्त हो सकता है। आगमसापेक्ष अनुमान तो प्रकृत विषय यानी स्त्री की मुक्ति के बारे में संवादी है न कि बाधक यह पहले दिखाया जा चुका है। यदि कहा जाय स्त्रीनिर्वाणविधायक आगमस्वरूप आप्तवचन प्रमाणभूत नहीं है, दूसरी ओर स्त्री को सप्तमनरक में गति का प्रतिषेधक सूत्र प्रमाण है तो ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि वचन में प्रामाण्य का प्रयोजक है आप्तभाषितत्व, वह दोनों ही स्त्रीमुक्तिविधायक एवं स्त्रीसप्तमनरकगतिनिवारक सूत्रों में विना पक्षप से मौजूद है, अतः एक को अप्रमाण, दूसरे को प्रमाण मानना गैरवाजीब है । 'उन में से नरकगतिनिषेधक सूत्र आप्तभाषित है किन्तु स्त्रीमुक्तिविधायक सूत्र आप्तभाषित नहीं है ऐसा कहना भी गलत है । कारण, वीतरागसर्वज्ञभाषित आगम एक ऐसा महावाक्य है जिस में दृष्ट- अदृष्ट प्रयोजन भूत अर्थों के प्रतिपादक, अनेक पूर्वापरभाव से स्थापित अवान्तरवाक्यों का समूह अभेदभावापन्न है अत एव वह अलग अलग नहीं किन्तु एक ही अखंड इकाई है। उन में से यदि किसी एक - दो अवान्तर वाक्यखंडों को अप्रमाण करार देंगे तो उन से अभेदभावापन्न महावाक्यात्मक समुचे आगम में अप्रामाण्य का अनिष्टप्रसंग गले में आ पडेगा । जैसा वस्त्र Jain Educationa International - ३८१ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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