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________________ ३८० श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् कालार्वाक्समयभाविना सर्वपर्याप्तिसम्पन्नेन तथाविधक्लिष्टपरिणामवता पुरुषेण व्यभिचारात् । न च यत्रातिशुभतरः परिणामस्तत्राप्यशुभतरपरिणामेन भाव्यमित्यत्रापि प्रतिबन्धः तथाविधयोगिना व्यभिचारात् । किं च, स्त्रीणां सप्तमनरकपृथ्वीप्राप्तिनिबन्धनकर्मबीजाध्यवसायाभावः कुतः प्रतिपन्नः ? 'आप्तागमात्' इति चेत् ? अशेषकर्मशैलवज्राशनिभूतशुभाध्यवसायसद्भावोऽपि तत एवाभ्युपगन्तव्यः। न हि अतीन्द्रिये एवंविधेऽर्थे अस्मदादेरर्वाग्दृशः आप्तागमाद् ऋतेऽन्यत् प्रमाणमस्ति । न च दृष्टेष्टाविरोध्याप्तवचनमसत्तर्कानुसारिजातिविकल्पैर्बाधामनुभवति तेषां प्राप्ताऽप्राप्तव्यापादकमतंगजविकल्पवदवस्तु * अतिक्लिष्ट और अतिशुभ परिणामों में व्याप्तिअभाव * ऐसा कोई कानून (व्याप्ति) नहीं हैं के जिस व्यक्ति में अतिक्लिष्ट अध्यवसाय का स्फुरण हो उसे अतिशुभतर अध्यवसाय का उदय भी होना चाहिये। तन्दुल मत्स्य बड़े मत्स्य के अक्षिपटल पर बैठा बैठा सोचता है कि यह बडा मत्स्य कैसा मूर्ख है - अपने मुँह में स्वयं जलप्रवाह के बल से आये हुए छोटे छोटे मत्स्यों को पेट में गिल लेने के बजाय ऐसे ही छोड देता है। अगर मैं होता तो सभी का कचूमर कर के पेट में गिल लेता। ऐसा अतिक्रूर सप्तमनरक गमनयोग्यकर्मबन्धजनक रौद्र अध्यवसाय अतिक्लिष्ट होता है किन्तु उसे मुक्तिप्रापक कर्मक्षयकारक अध्यवसाय कभी नहीं होता, अतः यहाँ वैसा कानून व्यर्थ सिद्ध होता है। यदि ऐसा कहा जाय कि - मनुष्यजाति में जन्म ले कर जिसे अतिक्लिष्ट अध्यवसाय होता है उसे अतिशुभाध्यवसाय भी अवश्य होता है ऐसा कानून व्यर्थ नहीं होगा। – तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि भविष्य में चारित्र लेने वाला हो ऐसा पुरुष, उत्तम प्रथम संघयणबल से युक्त हो, सर्वपर्याप्ति से सम्पन्न हो, अतिक्लिष्ट अध्यवसायवाला हो तो दृढप्रहारी आदि की तरह उस के पापाचार से भरपूर काल में अतिशुभ अध्यवसाय नहीं होता, अतः उक्त कानून की व्यर्थता तदवस्थ है। तथाजिस व्यक्ति में अतिशुभतर अध्यवसाय परिणाम हो उस व्यक्ति को अशुभतर परिणाम होता ही है - ऐसी व्याप्ति भी नहीं रच सकते, क्योंकि अनुत्तरदेवलोक से आये हुए तद्भवमुक्तिगामी चारित्रसम्पन्न भव्य योगीपुरुष में जब क्षपकश्रेणिसम्पादक अतिशुभ अध्यवसाय जाग्रत होता है तब उस व्यक्ति को क्लिष्टाध्यवसाय नहीं होता अतः वैसी व्याप्ति बना लेना भी व्यर्थ है। * आगमवचन में अनुमान बाध का असंभव * यह भी प्रश्न है – स्त्रियों को सप्तमनरकपृथ्वी में ले जाने वाले कर्मों के बीजभूत क्लिष्ट अध्यवसाय नहीं होता यह भी किस प्रमाण से सिद्ध है ? यदि आप्तपुरुषविरचित आगमप्रमाण से, तो फिर उसी प्रमाण से सकलकर्मों के पहाड को चूरा करने में समर्थ वज्राशनिपाततुल्य शुभाध्यवसाय भी स्त्रियों में मान लेना चाहिये । स्पष्ट बात है कि अध्यवसाय जैसी अतीन्द्रिय वस्तु के विषय में अपने जैसे अल्पदर्शी लोगों में आप्त आगम के अलावा और कोई प्रमाण शरण्य नहीं है। चाहे कितने भी कुतर्कपथगामी असत् विकल्पों की प्रपञ्चजाल खडी की जाय, लेकिन दृष्टाविरुद्ध और इष्टाविरुद्ध ऐसे आप्तवचन को कोई बाधा नहीं पहुँचा सकते। कुतर्कानुसारि विकल्प कभी वस्तुस्पर्शी नहीं होते, सिर्फ गज के बारे में किये गये प्राप्तघातक-अप्राप्तघातक विकल्पयूगल की तरह निरर्थक होते हैं। ___ एक पंडितजी रास्ते से गुजर रहे थे तो पीछे मदमस्त तूफानी हाथी दौडता आ रहा था, किसी ने पंडितजी को कहा, बाजू पर चले जाओ नहीं तो वह तूफानी हाथी आप को मार देगा - तब पंडितजी अपने कुतर्कस्वभाव का प्रदर्शन करते हुए विकल्प करने लगे – वह तुफानी हाथी प्राप्त (संयुक्त) को मारेगा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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