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पञ्चमः खण्डः - का० ६५ प्राप्तबीजादिसामग्रीकोऽङ्कुरः, अविकलकारणश्च तस्यामवस्थायां सीमन्तिनीमुक्त्याविर्भावः इति कथं न पक्षस्याऽनुमानबाधा ?
अथ स्त्रीवेदपरिक्षयाभावात् नाऽविकलचारित्रप्राप्तिस्तासामिति न मुक्तिभाक्त्वम्, तर्हि पुरुषस्याऽपि पुरुषवेदाऽपरिक्षयात् नाऽविकलचारित्रप्राप्तिरिति न मुक्तिप्राप्तिर्भवेत् । अथ तत्परिक्षये शैलेश्यवस्थाभाविचारित्रप्राप्तिमतः पुरुषस्य मुक्तिप्राप्तिर्न प्राक् – तर्हि सीमन्तिन्या अपि एवं मुक्तिप्राप्तौ न कश्चिद् दोषः सम्भाव्यते । अथाऽस्याः स्त्रीवेदपरिक्षयसामर्थ्याननुपत्ते यं दोषः - ननु तत्परिक्षयसामर्थ्याभावस्तस्याः कुतः सिद्धः ? 'आगमात्' इति चेत् ? न, तस्य तथाभूतस्य द्वादशाङ्ग्यामनुपलब्धेः । 'तत्परिक्षयसामर्थ्यप्रतिपादकस्यापि तस्यानुपलब्धिरिति चेत् ? न, 'सव्वथोवा तित्थयरिसिद्धा त्थियरितित्थे अतित्थयरिसिद्धा असंखेजगुणा' ( ) इत्यादिसिद्धप्राभृतागमस्यानेकस्य सामर्थ्यवृत्त्या सीमन्तिनीनां स्त्रीवेदपरिक्षयसामर्थ्यप्रतिपादकस्योपलम्भात् । न हि सर्वकर्मानीकनायकरूपमोहनीयआदि आगमों के आधार पर यह सिद्ध होता है कि भगवान के कहे हुए निर्ग्रन्थता के मूलभूत अखंड चारित्र की प्राप्ति स्त्रियों को अलभ्य नहीं है।
यदि ऐसा अनुमानप्रयोग किया जाय कि - 'अखंड चारित्रवती होने पर भी स्त्रियाँ मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकती' – तो यह अनुमान प्रति-अनुमान से बाधित होने का दोष अनिवार्य है। प्रति-अनुमान : जिस के कारण सम्पूर्ण मिल जाते हैं वह कार्य बे-रोकटोक उत्पन्न होता ही है, जैसे बीजादि सामग्री सम्पूर्ण चरम अवस्थाप्राप्त हो जाय तो अंकुरात्मक कार्य उत्पन्न होता ही है। अखंडचारित्रवती को स्त्री अवतार में मुक्ति के आविर्भाव की सामग्री परिपूर्ण होती है अतः स्त्रियाँ मुक्ति प्राप्त कर सकती हैं।
* सिद्धप्रामृत आदि आगमों में स्त्रीमुक्ति विधान * दिगम्बर :- स्त्रियों के स्त्रीवेद का क्षय नहीं होता, अतः उन्हें अखंड चारित्र की प्राप्ति शक्य न होने से मुक्ति प्राप्ति शक्य न होने से मुक्ति प्राप्ति की तो बात ही कहाँ ?! __ यथार्थवादी :- ऐसी मौखिक काल्पनिक बात के सामने ऐसी भी कल्पना शक्य है कि पुरुष के पुरुषवेद का क्षय नहीं होता, अतः उन्हें भी अखंड चारित्र प्राप्त न होने से मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती।
दिगम्बर :- पुरुषवेद का क्षय न होने तक पुरुष की मुक्ति भले ही न हो किन्तु पुरुषवेद का क्षय होने के बाद शैलेशी अवस्था में अखंड चारित्र (यथाख्यातसंज्ञक चारित्र) प्राप्ति के बाद मोक्ष जरूर प्राप्त होता है।
यथार्थवादी :- ठीक है, इसी तरह स्त्रीवेद का क्षय हो जाने पर स्त्री को भी शैलेशी अवस्था में अखंड चारित्र प्राप्ति द्वारा बाद में मोक्ष हो सकता है – इस में कोई दोष नहीं है। ___दिगम्बर :- स्त्री में यह सामर्थ्य नहीं होता कि यह स्त्रीवेद का क्षय कर सके, अतः उन्हें मुक्तिप्राप्ति के दोष की सम्भावना भी नहीं है। __ यथार्थवादी :- कैसे आपने यह सिद्ध कर लिया कि स्त्रियों में स्त्रीवेदविनाश का सामर्थ्य नहीं होता ? आगम से तो यह सिद्ध नहीं हो सकता। समग्र द्वादशांगी आगम में कोई भी ऐसा सूत्र नहीं है जो स्त्री में स्त्रीवेदविनाशसामर्थ्य का निषेध करता हो।
दिगम्बर :- ऐसा कोई सूत्र भी नहीं है कि जिस में स्त्रीवेदक्षय के सामर्थ्य का विधान हो। यथार्थवादी :- यह कथन गलत है, 'सिद्धप्राभृत' आदि अनेक आगमों में 'सव्वथोवा०' इत्यादि सूत्रों
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