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पञ्चमः खण्डः का० ६५
* स्त्रीमोक्षाधिकारे दिगम्बरमतनिर्मूलनम् *
अथ स्त्रियो मुक्तिभाजो न भवन्ति, स्त्रीत्वात्, चतुर्दशपूर्वसंविद्भागिन्य इव ।
अत्र यदि ‘सर्वाः स्त्रियो मुक्तिभाजो न भवन्ति' इति साध्येत तदा सिद्धसाध्यता, अभव्यस्त्रीणां मुक्तिसद्भावानभ्युपगमात् । अथ 'भव्या अपि तास्तद्भाजो न भवन्ति' इति साध्यते तदाऽत्रापि सिद्धसाध्यता, भव्यानामपि सर्वासां मुक्तिसंगाऽनिष्टेः
'भव्वा वि ते अणता सिद्धिपहं जे ण पावेंति' ( ) इति वचनप्रामाण्यात् । अथ अवाप्तसम्यग्दर्शना अपि ता न तद्भाजः इति पक्षः । अत्रापि सिद्धसाध्यता तदवस्थैव प्राप्तोज्झितसम्यग्दर्शनानां तासां तद्भाक्त्वानिष्टेः । अथ अपरित्यक्तसम्यग्दर्शना अपि न तास्तद्भाजः, तथापि सिद्धसाध्यता अप्राप्ताऽविकलचारित्राणां सम्यग्दर्शनसद्भावेऽपि तत्प्राप्त्यनभ्युपगमात् । अथ अविकलचारित्रप्राप्तिरेव तासां न भवति। कुत एतत् ? यदि स्त्रीत्वात्, पुरुषस्यापि सा न स्यात् पुरुषत्वात्। अथ पुरुषे में जो भिक्षु पूर्ण वस्त्र का ग्रहण करे० ' (वह प्रायश्चित्तभागी होता है) इस तरह प्रमाण से अधिक और अतिमूल्यवान वस्त्र का ग्रहण प्रतिषेध किया गया है उस से ही प्रमाणयुक्त और अल्पमूल्य वस्त्रों के ग्रहण का विधान फलित हो जाता है । तथा आगम में यतिप्रायोग्य वस्त्रादि का ग्रहण और अयोग्य वस्त्रादि का प्रतिषेध किया गया है जैसे – दशवैकालिक सूत्र में कहा है 'पिण्ड (आहारादि), शय्या, वस्त्र और पात्र यदि अकल्पित है तो साधु इसे ग्रहण की इच्छा न करे, कल्पित हो तो ग्रहण करे।' इस सूत्रार्थ से भी कल्पित वस्त्रादि ग्रहण का स्पष्ट विधान सिद्ध होता है । इस प्रकार द्वादशांगी में वस्त्रग्रहण विधायक अनेक सूत्र मौजूद है । अत एव गौणरूप से यानी औपचारिक नग्नता ( जीर्ण-शीर्ण वस्त्र ) के प्रतिपादक सूत्रलेश के श्रवण मात्र से, अथवा मुख्यवृत्ति से श्रेष्ठसंघयणबलवाले पुरुषविशेष के लिये अवस्थाविशेष में वस्त्रत्याग का विधायक किसी सूत्र के श्रवणमात्र से ग्रथिल बन कर, अन्य सूत्रों में भगवान के द्वारा उपदिष्ट वस्त्रादिग्रहण का निषेध करने का साहस करना, अविचारितरमणीय है। वस्त्रादिग्रहण प्रतिपादक सूत्रों का अपलाप करने वाले प्रवक्ताओं में नास्तिकमत के उपासकों की तरह मिथ्यात्व प्राप्ति का प्रसंग दुर्निवार है । जैसे नास्तिक मतवाले जैनागम का अपलाप करते हैं वैसे ही दिगम्बर प्रवक्ता भी वस्त्रग्रहण प्रतिपादक जैनागमों का अपलाप करके अपनी ही हानि कर रहा है
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उपरोक्त समग्र चर्चा का निष्कर्ष यह है कि वस्त्रपात्रादि उपकरण के धारक श्वेताम्बर यति निःसंदेह मोक्षफलप्रापक सम्यग्दर्शन- सम्यग्ज्ञान- सम्यक्चारित्रात्मक रत्नत्रयी से विभूषित होते हैं, क्योंकि वे भगवदुपदिष्ट अखंड पाँच महाव्रतों से सम्पन्न हैं, जैसे गौतमस्वामी आदि गणधर महर्षि । उपसंहार करते हुए और स्त्रीमुक्ति का निर्देश करते हुए व्याख्याकार कहते हैं कि धर्मोपकरण के धारक महाव्रतों के पालक निर्ग्रन्थ होते हैं अत एव महाव्रतधारी साध्वीयों को भी मोक्षप्राप्ति में कोई बाधा नहीं है ।
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* स्त्रीमुक्ति के अधिकार में दिगम्बरमत प्रतिक्षेप
'स्त्रियों की मुक्ति' यह सुन कर दिगम्बर को क्यों पीडा होती है पता नहीं वह गर्जना करने लग जाता है स्त्रियों की मुक्ति कभी नहीं होती क्योंकि उस को स्त्री का अवतार मिला है, स्त्री के अवतार में जैसे चौदह पूर्व-दृष्टिवाद का ज्ञान उन्हें प्राप्त नहीं होता । दिगम्बर की पीडा के अपहरण के लिये अब व्याख्याकार कहते हैं कि यदि 'सभी स्त्रियों की मुक्ति नहीं होती' इतना ही उसे सिद्ध करना हो तो सिद्धसाधन (आयासमात्र) है क्योंकि सभी स्त्रियों में अभव्य स्त्री भी समाविष्ट ही हैं । यदि सभी भव्य स्त्रियों की भी मुक्ति का निषेध साध्य हो तो यहाँ भी सिद्धसाधन ( आयासमात्र ) है क्योंकि हम भी नहीं मानते कि समस्त
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